________________ जैनधर्म के सम्प्रदाय : 85 का उल्लेख 1426 ई०, 1450 ई०, 1468 ई०, 1473 ई० और 1477 ई. के प्रतिमालेखों में मिलता है।' इस गच्छ का उल्लेख करने वाले पांचों प्रतिमालेख १५वीं शताब्दी के हैं। इससे यही प्रतिफलित होता है 'कि यह गच्छ मात्र १५वीं शताब्दी में ही अस्तित्व में बना रहा। पर्याप्त साक्ष्यों के अभाव में इस गच्छ के विषय में और अधिक जानकारी ज्ञात नहीं हो सकी है। 48. मडाहड रत्नपुरीय गच्छ : यह गच्छ संभवतः मडाहड गच्छ को हो एक शाखा रही होगी। इस गच्छ का उल्लेख 1428 ई०, 1444 ई० और 1500 ई० के 3 अभिलेखों में उपलब्ध होता है / इस गच्छ के संदर्भ में भी कोई विशेष जानकारी उपलब्ध नहीं है। . 49. पुरन्दर गच्छ : - यह गच्छ बृहत् तपागच्छ से उत्पन्न हुआ है, यह संकेत 1439 ई० के एक अभिलेख में मिलता है। इस अभिलेख में इस गच्छ के अनुयायियों द्वारा किये गये विविध प्रकार के परोपकारी कार्यों का उल्लेख हुआ है। अभिलेख में इस गच्छ के मुनि जगतचंदसूरि, देवेन्द्रसूरि और देवसुन्दरसूरि सहित पुरन्दर गच्छ के अधिपति आचार्य सोमदेवसूरि का भी नामोल्लेख हुआ है। 50. बोकड़िया गच्छ : 1439 ई० से 1505 ई. तक के 4 मूर्तिलेखों में इस गच्छ का उल्लेख उपलब्ध होता है। पर्याप्त अभिलेखों एवं साहित्यिक साक्ष्यों के अभाव में इस गच्छ की उत्पत्ति एवं मान्यता संबंधी विशेष जानकारियाँ बात नहीं हो सकी हैं। ५१.चित्रवाल गच्छ : .. 1444 ई० से 1456 ई. तक के 5 मूर्तिलेखों में इस गच्छ का उल्लेख उपलब्ध होता है / " मात्र 12 वर्ष की अल्पावधि के उपलब्ध इन मूर्ति१. प्रतिष्ठा लेख संग्रह, क्रमांक 241, 416, 659, 722, 780 2. वही, क्रमांक 253, 339, 891 3. जैन लेख संग्रह, भाग 1, क्रमांक 700. . 4. प्रतिष्ठा लेख संग्रह क्रमांक 315, 714, 716, 916 1. वही, क्रमांक 346, 370, 396,434, 505..