________________ 72 : जैनधर्म के सम्प्रदाय 2. अजितनाथ चरित्र की दाता प्रशस्ति : कोरंट गच्छ का उल्लेख करने वाला यह साहित्यिक साक्ष्य त्रिशष्टिशलाकापुरुषचरित्र के द्वितीय सर्ग की वि० सं० 1436 में तैयार की गयी प्रतिलिपि को दाता प्रशस्ति है / 9 श्लोकों की इस प्रशस्ति में प्रथम चार श्लोकों में दाता श्रावक देवसिंह और उसके परिवार का परिचय है तथा अन्तिम पांच श्लोकों में आचार्य नन्नसूरि का प्रशंसात्मक विवरण है। . 3. राजप्रश्नीयसूत्र की दाता प्रशस्ति : * राजप्रश्नीयसूत्र की वि०सं० 1691 में तैयार को गयो प्रतिलिपि को यह दाता प्रशस्ति कोरंटगच्छ के इतिहास का अध्ययन करने के लिए उपलब्ध तीसरा और अन्तिम साहित्यिक साक्ष्य है। इस प्रशस्ति में कोरंटगच्छोय वाचक परम्परा की गुर्वावली भी दी गयी है। अभिलेखीय साक्ष्य : ___ इस गच्छ के आचार्यों द्वारा विभिन्न स्थानों पर प्रतिष्ठापित प्रतिमाओं पर उत्कीर्ण लेखों से इस गच्छ से सम्बन्धित पर्याप्त जानकारो मिलती है। 1144 ई० से 1555 ई. तक के लगभग 140 अभिलेख उपलब्ध होते हैं, जिनमें इस गच्छ का उल्लेख हुआ है।' उपलब्ध साहित्यिक एवं अभिलेखीय साक्ष्यों का अध्ययन करने से ज्ञात होता है कि यह गच्छ १२वीं शताब्दी के मध्य में अस्तित्व में आया और १६वीं शताब्दी तक अस्तित्व में रहा। 400 वर्षों तक विद्यमान रहकर भी इस गच्छ के आचार्यों ने कोई विशेष साहित्यिक योगदान नहीं देकर स्वयं को मात्र नूतन जिनालयों के निर्माण एवं नवीन जिन-प्रतिमाओं की प्रतिष्ठा तक ही सीमित रखा। १६वीं शताब्दी के बाद का ऐसा कोई साक्ष्य उपलब्ध नहीं होता है जिसमें इस गच्छ का उल्लेख मिलता हो, इसलिए यह कहना उपयुक्त होगा कि १६वीं शताब्दी के बाद इस गच्छ के अनुयायी भो उस समय में विद्यमान अन्य प्रभावशाली गच्छों में सम्मिलित हो गए होंगे। 15. देवाभिदित गच्छ : 1144 ई० के एक अभिलेख में इस गच्छ का उल्लेख मिलता है। जिससे ज्ञात होता है कि १२वीं शताब्दी के लगभग यह गच्छ अस्तित्व में 1. डॉ. शिवप्रसाद-कोरंट गच्छ; श्रमण, मार्च 9989, पृ० 18-43 2. जैन लेख संग्रह, क्रमांक 1998