________________ 64 : जैनधर्म के सम्प्रदाय 12 वीं शताब्दी से लेकर 17 वीं-१८ वीं शताब्दी तक के उपलब्ध अभिलेखों में इस गच्छ के आचार्यों द्वारा जिनप्रतिमाओं की प्रतिष्ठा एवं जिनालयों को स्थापना आदि करने के उल्लेख उपलब्ध होते हैं। इस गच्छ के आचार्य साहित्य-सृजन में भी पर्याप्त रुचि रखते थे। इस गच्छ के प्रमुख आचार्य और उनके द्वारा रचित साहित्य का उपलब्ध विवरण इस. प्रकार है१. नेमिचन्दसरि : आचार्य नेमिचंदसूरि द्वारा रचित साहित्य इस प्रकार है( 1 ) आख्यानमणिकोष, (मूल) (2) आत्मबोधकुलक / ( 3 ) उत्तराध्ययनवृत्ति (सुखबोधा) ( 4 ) रत्नचूडकथा ( 5 ) महावीरचरियं। 2. मुनिचन्द्रसूरि : मुनिचन्द्रसूरि ने कुल 31 ग्रन्थ लिखे हैं / उनमें से वर्तमान में निम्न 10 ग्रन्थ ही उपलब्ध हैं (1) अनेकान्तजयपताकाटिप्पनक, (2) ललितविस्तरापञ्जिका, (3) उपदेशपद-सुखबोधावृत्ति, (4) धर्मबिन्दु-वृत्ति, (5) योगबिन्दु-वृत्ति, (6) कर्मप्रवृत्ति-विशेषवृत्ति, (7) आवश्यक (पाक्षिक) सप्ततिका, (8) रसा. उलगाथाकोष, (9) सार्धशतकचूर्णी, (10) पार्श्वनाथस्तवनम् / 3. वादिदेवसूरि : आचार्य वादिदेवसरि द्वारा रचित साहित्य इस प्रकार है (1) प्रमाणनयतत्त्वालोकालंकार, (2) स्याद्वादरत्नाकर (टीका ग्रंथ), (3) मुनिचन्द्रसूरिगुरुस्तुति, (4) मुनिचन्द्रगुरुविरहस्तुति, (5) यतिदिनचर्या, (6) उपधानस्वरूप, (7) प्रभातस्मरण, (8) उपदेशकुलक, (9) संसारोदिग्नमनोरथकुलक, (10) कलिंकुडपार्श्वस्तवनम् आदि। 4. हरिभद्रसूरि : ____ आचार्य हरिभद्रसूरि द्वारा रचित चार ग्रन्थों की जानकारी मिलती (1) बंध स्वामित्व [वृत्ति], (2) आगामिकवस्तुविचारसारप्रकरण [वृत्ति], (3) श्रेयांसनाथचरित, (4) प्रशमरतिप्रकरण [वृत्ति / 1. डॉ. शिवप्रसाद-बृहद् गच्छ का संक्षिप्त इतिहास, उद्धृत-Aspects of Jainology, Vol. 3, p. 105-113