________________ जैनधर्म के सम्प्रदाय : 65. 5. रत्नप्रभसूरि: आचार्य रत्नप्रभसूरि द्वारा रचित साहित्य निम्नानुसार है (1) रत्नाकरावतारिका [टीका] , (2) दोघट्टीवृत्ति, (3) नेमिनाथचरित, (4) मतपरीक्षापंचाशत, (5) स्याद्वादरत्नाकर [लघु टीका] / 6. हेमचन्द्रसूरि : ___ आप आचार्य अजितदेवसूरि के शिष्य थे और आपने नेमिनाभेय काव्य की रचना की थी। 7. हरिभद्रसूरि : हरिभद्रसूरि ने चौबीस तीर्थंकरों के चरित्र ग्रन्थों की रचना की थी, किन्तु चंद्रप्रभचरित्र, मल्लिनाथचरित्र और नेमिनाथचरित्र-इन तीन चरित्र ग्रन्थों के अतिरिक्त शेष 21 चरित्र ग्रन्थ वर्तमान में उपलब्ध नहीं हैं। 8. सोमप्रभसुरि: आचार्य सोमप्रभसूरि ने चार ग्रन्थों की रचना की थी-(१) कुमारपालप्रतिबोध, (2) सुमतिनाथचरित्र, (3) सूक्तमुक्तावली और (4) सिंदुर- . प्रकरण। 9. नेमिचन्द्रसूरि : . नेमिचन्द्रसूरि आचार्य आम्रदेवसूरि के शिष्य थे। इन्होंने प्रवचनसारोद्धार नामक महत्वपूर्ण दार्शनिक ग्रन्थ की रचना की थी। बृहद्गच्छ का उल्लेख करने वाली प्राचीनतम प्रशस्तियाँ 12 वीं शताब्दी को हैं / इस गच्छ की उत्पत्ति के विषय में प्रकाश डालने वालो चार प्रशस्तियां इस प्रकार हैं- (1) रत्नप्रभसूरि द्वारा रचित उपदेशमालाप्रकरणवृत्ति [ई० सन् . 1181] (2) मुनि सुन्दरसूरि द्वारा रचित गुर्वावली [ई० सन् 1409] (3) धर्मसागरसूरि द्वारा रचित तपागच्छ पट्टावली [ई० सन् 1591] (4) मुनिमाल द्वारा रचित बृहद्गच्छगुर्वावली [ई० सन् 1694] इन प्रशस्तियों के अनुसार अर्बुद पर्वत पर ई० सन् 937 में एक वट .. : 1. डॉ. शिवप्रसाद-बृहद्गच्छ का संक्षिप्त इतिहास : उद्धृत-Aspects of Jainology, Vol. 3, P. 105-106 .. ..