________________ जैनधर्म के सम्प्रदाय : 53 एक ही साथ होना मानते हैं / आचार्य गंग को उनके गुरु आचार्य धनगप्त ने कहा कि तुम्हारा यह मन्तव्य उचित नहीं है, क्योंकि समय और मन बहुत सूक्ष्म होते हैं। वे भिन्न-भिन्न होते हुए भी स्थूलबुद्धि के कारण मनुष्य को एक ही प्रतीत होते हैं, जबकि वस्तुतः ऐसा नहीं होता है। आचार्य धनगुप्त द्वारा समझाने पर आचार्य गंग को सत्य का बोध हो जाता है और वे अपने "द्विक्रियावादी" सिद्धान्त को त्यागकर पुनः महावीर के संघ में सम्मिलित हो जाते हैं। 6. रोहगुप्तः ___ महावीर निर्वाण के पाँच सौ चालीस वर्ष पश्चात् हुए छठे निव के रूप में रोहगुप्त का उल्लेख मिलता है। जैन सिद्धान्त के अनुसार इस जगत में दो ही राशियां हैं-(१) जीवराशि और (2) अजीवराशि / किन्तु रोहगुप्त ने जैन सिद्धान्त के विपरीत जीव, अजीव और नोजीवइन तीन राशियों की स्थापना की थी। उनका सिद्धान्त "त्रैराशिकवाद" के नाम से जाना जाता है। त्रैराशिकवाद की उत्पत्ति की कथा बड़ी रोचक है। कहा जाता है कि पोदृशाल नामक एक परिव्राजक अपने से वाद करने हेतु सभी को चुनौती देता था / एकबार रोहगुप्त ने पोदृशाल को चुनौती स्वीकार कर ली। जब राज्यसभा में वाद प्रारम्भ हुआ तो चालाक पोट्टशाल ने रोहगुप्त के पक्ष को ही अपना पक्ष बना लिया और कहा कि जगत में दो ही राशियाँ हैं-(१) जीव राशि और ( 2) अजीव राशि / रोहगुप्त को पोट्टशाल के मत का खण्डन करना था, इसलिये उसने जीव, अजीव के साथ नोजोव राशि की भी स्थापना कर दी। वस्तुतः त्रैराशिकवाद की स्थापना रोहगुप्त ने मात्र चालाक पोट्टशाल को वाद में पराजित करने के लिए ही की थी। किन्तु एक बार जब त्रैराशिकवाद की स्थापना रोहगुप्त ने कर दी तो फिर उसने उसका प्रतिवाद नहीं किया और वह आजीवन "राशिकवाद" को ही मानता रहा। 1. (क) स्थानांगसूत्र, 7 / 140-14', (ख) औपपातिकसूत्र, 122 (ग) आवश्यकभाष्य, गाथा 135 (घ) विशेषावश्यकभाष्य, गाथा 2451 2. (क) औपपातिकसूत्र, 122 व्याख्या-मधुकर मुनि (ख) उत्तराध्ययननियुक्ति, गाथा 166-172 (ग) विशेषावश्यकभाष्य, गाथा 2452-2508