________________ 44 : जैनधर्म के सम्प्रदाय जैन अभिलेखों में प्राचीनता की दृष्टि से खारवेल के हत्थीगुम्फा अभिलेख के पश्चात् मथुरा के अभिलेख माने गये हैं। मथुरा के अधिकांश अखिलेख ईसा की पहली एवं दूसरी शताब्दी के हैं। इन अभिलेखों के माध्यम से जैन धर्म के विविध गण, शाखा और कूलों के सन्दर्भ में पर्याप्त जानकारी मिलती है / मथुरा के अभिलेखों में कोटियगण' वारणगण तथा उद्देहिकीयगण का उल्लेख मिलता है। मथुरा के इन अभिलेखों में कोट्यिगण की तीन शाखाओं उच्चनागरी शाखा,वइरी (वज्री) शाखा और आर्यवज्रीशाखा तथा तीन कुलों-ब्रह्मदासिककुल, स्थानीयकुल और वात्सली कुल का उल्लेख हुआ है। वारणगण की चार शाखाओं-ओदशाखा, वज्रनागरीशाखा, हारितमालागारिकशाखा और संकाशियाशाखा तथा सातकुलों-पेतिवामिककुल, पुण्यमैत्रीयकुल, आर्यहाटीकीयकुल, आर्यवेट्टियकुल, अय्यमिस्तकुल, कनियसिक कुल और नाडियकुल का उल्लेख भी इन अभिलेखों में मिलता है। इन्हीं अभिलेखों में उद्देहिकीयगण की एक शाखा पेयपुत्तिकाशाखा तथा दो कुलों-आर्यनागभूतकीयकुल और परिधासिककुल का भी नामोल्लेख मिलता है। मथुरा के अभिलेखों में उल्लिखित विविध गणों, शाखाओं एवं कुलों के नाम कल्पसूत्र स्थविरावली में उल्लिखित हैं। इस प्रकार इनकी पुष्टि साहित्यिक स्रोतों से भी हो जाती है / जैन संघ के विभाजन की प्रक्रिया एवं जैन सम्प्रदायों के उद्भव एवं विकास को समझने की दृष्टि से ये अभिलेख अत्यन्त महत्वपूर्ण हैं / ___मथुरा के इन अभिलेखों में उल्लिखित विविध गणों, शाखाओं और कुलों के अलावा कई आचार्यों, मुनियों एवं आर्यिकाओं के नाम भी उल्लिखित हैं / इन अभिलेखों से इनके गण, शाखा एवं कुल का अभिज्ञान हो जाता है / " विशेष बात यह है कि मथुरा के अभिलेखों में हमें आर्यकण्ह ( आर्य कृष्ण ) का भी उल्लेख मिलता है, जो उत्तर भारत में हुए सम्प्रदाय भेद के प्रथम पुरुष रहे हैं। वस्त्र-पात्र को लेकर आर्य शिवभूति से इनका ही विवाद हुआ था। 1. जैन शिलालेख संग्रह, भाग 2, क्रमांक 19, 20, 22, 23, 25 2. वही, भाग 2, क्रमांक 17, 34, 41, 44, 45 3. वही, भाग 2, क्रमांक 24, 69 4. कल्पसूत्रम्-सम्पा० म० विनयसागर, सूत्र 212-216 5. जैन शिलालेख संग्रह, भाग 2, क्रमांक 22, 23, 24, 29, 37, 42, 44, 45, 52, 55, 56, 69 और 82