________________ 48 : जैनधर्म के सम्प्रदाय है, उसे किया हुआ कहा जा सकता है। किन्तु जमालि का कहना था कि क्रियमाण को कृत नहीं कहा जा सकता।' अपने तर्क के पक्ष में वह बिछोना बिछाये जाने का सुन्दर दृष्टान्त देते हुए कहता है कि जो बिछोना बिछाया जा रहा हो, उसे बिछा हुआ कैसे कहा जा सकता है ? जमालि के इस विचार से हो महावीर काल में सर्वप्रथम वैचारिक मतभेद का सूत्रपात हुआ। यह अलग बात है कि जमालि की तुलना में महावीर का व्यक्तित्व अधिक प्रभावशाली था, जिससे यह वैचारिक मतभेद महावीर के संघ को अधिक क्षति नहीं पहुंचा सका। जमालि अपने 500 शिष्यों के साथ महावीर के संघ से अलग होकर अपने सिद्धान्त का प्रचार करता रहा / जमालि का सिद्धान्त "बहतरवाद" के नाम से जाना जाता है / 2 प्रियदर्शना साध्वी, जो गृहस्थावस्था की दृष्टि से महावीर की पुत्री तथा जमालि की पत्नी थी, वह भी जमालि के प्रति राग के कारण उसके मत को स्वीकार कर अपनी एक हजार श्रमणियों के साथ महावीर के संघ से अलग हो गई थी। एक बार वह साध्वी समुदाय सहित श्रावस्ती नगरी में गईं। वहाँ वह श्रमणोपासक ढंक कुंभकार को भांडशाला में ठहरी। साध्वी प्रियदर्शना को प्रतिबोध देने हेतु ढंक ने उसकी संघाटी (चद्दर ) पर आग की एक चिनगारी फेंकी। जैसे ही संघाटी जलने लगी, प्रियदर्शनी ने कहा, श्रावक ! यह तुमने क्या किया ? मेरो संघाटी जला दी। ढंक ने कहा-आर्ये! आप असत्य बोल रही हैं। संघाटी जली नहीं है / जलते हुए को जला कहना तो महावीर का सिद्धान्त है। आपका सिद्धान्त तो जलते हुए को जला नहीं कहता, फिर आपने जलती हुई संघाटी के लिये “संघाटो जला दी" ऐसा कैसे कहा ? इतना सुनकर प्रियदर्शना को सत्य का बोध हो गया और वह पुनः अपनी एक हजार श्रमणियों के साथ महावीर के संघ में सम्मिलित हो गई। किन्तु जमालि 1. (क) व्याख्याप्रज्ञप्ति, 9 / 33 (ख) विशेषावश्यकभाष्य, गाथा 2306-2308 2. (क) स्थानांगसूत्र, 7 / 140-141 (ख) औपपातिकसूत्र, 122 (ग) उत्तराध्ययननियुक्ति-नियुक्तिसंग्रह (भद्रबाहु), गाथा 165-168 (घ) आवश्यकभाष्य, गाथा 125 (ङ) विशेषावश्यकभाष्य, गाथा 2301 3. श्री पट्टावली पराग संग्रह, पृ० 69