________________ 38 : जैनधर्म के सम्प्रदाय ___ अंग, उपांग, छेद, चूलिका, मूल और प्रकीर्णक ग्रंथों के रूप में विभक्त श्वेताम्बर मान्य आगमों में सूत्रकृतांगसूत्र, स्थानांगसूत्र, समवा- . यांगसूत्र, व्याख्याप्रज्ञप्तिसूत्र, राजप्रश्नीयसूत्र तथा उत्तराध्ययनसूत्र आदि . में पार्श्व और महावीर की परम्परा के मान्यता भेदों को जानकारी प्राप्त होती है। व्याख्याप्रज्ञप्तिसूत्र में हमें महावीर से अलग हुए नियतिवादी विचारक गोशालक तथा महावीर के जामाता जमालि के द्वारा किये गए संघ भेद का भी उल्लेख मिल जाता है। इसी प्रकार स्थानांगसूत्र और कल्पसूत्र आदि से हमें महावीर की शिष्य परम्परा में आगे चलकर जो गणभेद हुए, उनकी सूचनाएं मिलती हैं। जहाँ तक आगमिक व्याख्याओं का प्रश्न है उनमें नियुक्ति तथा भाष्य साहित्य से हमें सात निह्नवों और बोटिक मत को उत्पत्ति के सम्बन्ध में जानकारी प्राप्त होती है / इसके अतिरिक्त आगमिक व्याख्या साहित्य विशेष रूप से चणियों और टीकाओं से हमें न केवल महावीर की संघ व्यवस्था में हुए मतभेदों की सूचना मिलती है अपितु महावीर के संघ में हुए आचार-विचारगत परिवर्तनों की भी जानकारी मिल जाती है। इस प्रकार आगम और आगमिक व्याख्या साहित्य जैन धर्म के विभिन्न सम्प्रदायों और उपसम्प्रदायों की उत्पत्ति और विकास के सन्दर्भ में महत्वपूर्ण सूचनाएं प्रदान करता है / जहाँ तक आगमेतर साहित्य का प्रश्न है उनमें चरितकाव्य मुख्य हैं, इनके अतिरिक्त स्तुतिपरक, आचारमूलक, साधनाप्रधान तथा उपदेशास्मक ग्रंथ भी पर्याप्त रूप से लिखे गए हैं, इनमें सामान्यतया सम्प्रदाय भेद आदि के सम्बन्ध में कोई विशेष जानकारी तो नहीं मिलती है, किन्तु इन ग्रन्थों की हस्तलिखित प्रतियों में जो प्रशस्तियाँ मिलती हैं उनमें विविध सम्प्रदायों की गुरु-परम्परा, गच्छ, कुल एवं अन्वय आदि के उल्लेख मिल जाते हैं जो विविध सम्प्रदायों के उद्भव एवं विकास को समझने में सहायक हैं। ____ आगमेतर साहित्य में अनेक ऐसे ग्रन्थ भी उपलब्ध होते हैं जिनमें अन्य सम्प्रदायों की मान्यताओं की समीक्षा उपलब्ध होती है / इसके साथ ही जैन परम्परा में एक-दूसरे सम्प्रदाय के खण्डन-मण्डन के रूप में भी विपुल साहित्य निर्मित हुआ है। दर्शन संबंधी विविध ग्रन्थों में जहाँ दिगम्बर आचार्यों ने श्वेताम्बर आचार्यों को स्त्रीमुक्ति एवं केवलिभुक्ति सम्बन्धी अवधारणाओं की समीक्षा की है, वहीं श्वेताम्बर आचार्यों ने अपने ग्रन्थों में उसका प्रत्युत्तर देने का प्रयास किया है। कुछ कथा ग्रन्थों जैसे वृहदकथाकोश आदि में भी श्वेताम्बर और यापनीय सम्प्रदाय के