________________ 28 : जैनधर्म के सम्प्रदाय इस प्रकार हम देखते हैं कि श्वेताम्बर एवं दिगम्बर दोनों परंपराओं ने महावीर एवं पार्श्व की मान्यता में प्रतिक्रमण संबंधी यह भेद समान रूप से स्वीकार किया है। 4. सामायिक और छेदोपस्थापनीय चारित्र का भेद : पार्श्व और महावीर की परम्परा में एक महत्वपूर्ण अन्तर यह था कि महावीर ने छेदोपस्थापनीय चारित्र का उपदेश दिया था, जबकि पार्श्व ने मात्र सामायिक चारित्र का उपदेश दिया था। इस कथन के समर्थन में श्वेताम्बर परम्परा के मान्य ग्रन्थ आवश्यकनियुक्ति तथा दिगम्बरं परम्परा के मान्य ग्रन्थ मूलाचार में कहा गया है "बावीसं तित्थयरा सामाइयसंजमं उवइसति / __ छेओवट्ठावणयं पुण वयन्ति उसभो य वीरो य।"१ चारित्र के पांच प्रकारों में से पहला प्रकार सामायिक चारित्र है तथा दूसरा छेदोपस्थापनीय चारित्र है। इसमें पूर्वपर्याय का छेदन करके पंच महाव्रतों का आरोपण किया जाता है। परंपरागत रूप में सामायिकसंयम को छोटी दीक्षा और छेदोपस्थापनीयसंयम को बड़ी दीक्षा कहा जाता है / 5. रात्रि भोजन निषेध का भेद : पार्श्व की परंपरा में रात्रिभोजन का प्रचलन था या नहीं, इस विषय में यद्यपि कोई साहित्यिक साक्ष्य उपलब्ध नहीं है तथापि सूत्रकृतांगसूत्र में यह उल्लेख मिलता है कि महावीर ने रात्रि भोजन का पृथक रूप से निषेध किया था। दशवैकालिकसूत्र में रात्रिभोजन निषेध को पांच महाव्रतों के समान ही महत्त्व देकर छठे व्रत के रूप में स्थापित किया गया है। सम्भव है कि पार्श्व के काल तक रात्रिभोजन निषेध अहिंसा महाव्रत की 'आलोकित भोजन-पान' नामक भावना में गृहीत रहा हो, किन्तु महावीर ने छठे व्रत के रूप में इसे मान्यता देकर इस व्रत के महत्व को स्थापित किया था। 1. (क) आवश्यकनियुक्ति, गाथा 1260 (ख) मूलाचार, गाथा 535 2. 'से वारिया इत्थि सराइभत्तं उवहाणयं दुक्खयट्ठयाए" --सूत्रकृतांगसूत्र 1 / 6 / 379 3. "इच्चेइयाइं पंचमहन्वयाइ राईभोयणवेरमणछट्ठाइ अत्तहियठयाए / " -दशवकालिकसूत्र, 4 / 17