________________ 30 : जैनधर्म के सम्प्रदाय भेद रहा है वह सब आचार संबंधी मान्यताओं को लेकर ही है। दर्शन विषयक कोई भेद इन दोनों की मान्यताओं में रहा हो, ऐसा हमें ज्ञात नहीं हुआ है। डा० ए० एन० उपाध्ये और श्रीमती स्टिवेन्सन भगवान् पार्श्व और महावीर की परम्परा के इन मतभेदों को ही जैन परंपरा में सम्प्रदाय भेद का कारण मानते हैं।' यह सत्य है कि महावीर ने पार्श्व को सुविधावादी आचार-व्यवस्था में अनेक संशोधन एवं परिवर्द्धनकर एक कठोर एवं सुस्पष्ट आचार-विधि का निरूपण किया था। महावीर निर्वाण के पश्चात् जैन धर्म को स्थिति : महावीर के संघ में 14,000 श्रमण, 36,000 श्रमणियाँ, 1,59,000 श्रावक और 3,18,000 श्राविकाएँ थीं। उपलब्ध सूचनाओं के अध्ययन से ज्ञात होता है कि महावीर का यह संघ अधिक समय तक संगठित नहीं रह सका / महावीर के निर्वाण के साथ ही कतिपय सैद्धान्तिक एवं आचार संबंधी मतभेदों के कारण या गुरु-परम्परा के आधार पर यह संघ विभाजित हो गया जिसके परिणामस्वरूप अनेक गण, शाखाएँ एवं कुल . अस्तित्व में आयें / अभिलेखीय एवं साहित्यिक साक्ष्यों में हमें उनके सम्बन्ध में जानकारी उपलब्ध होती है। महावीर निर्वाण के समय से लेकर महावीर निर्वाण के 600 वर्ष पश्चात् तक जैन धर्म में विभिन्न गण, कूल एवं शाखाओं की स्थिति क्या थी तथा कौन-कौन आचार्य हुए थे? इसकी जानकारी का प्रामाणिक आधार श्वेताम्बर परंपरा में कल्पसूत्र और नन्दीसूत्र की स्थवविरावलीयाँ हैं तथा दिगम्बर परम्परा में यह जानकारी उनके द्वारा मान्य प्राचीन ग्रन्थ तिलोयपण्णत्ति में उल्लिखित है / कल्पसूत्र में उल्लिखित आचार्यों को नामावली इस प्रकार है 1. गणधर गोतम-महावीर का परिनिर्वाण होने पर गणधर गोतम को केवलज्ञान हुआ, अतः उन्होंने संघ संचालन का समस्त कार्य आर्य सुधर्मा को सौंप दिया। गणधर गोतम घोर तपस्वी और चौदहपूर्व ग्रन्थों के ज्ञाता थे। ज्ञातव्य है कि जैन साहित्य का अधिकांश भाग महावीर और गोतम के संवाद के रूप में ही है। 12 वर्ष जीवन-मुक्त (केवलो) अवस्था में रहकर 92 वर्ष की आयु पूर्ण कर वे मुक्त हुए थे। दिगम्बर परम्परा 1. पटोरिया, श्रीमती कुसुम-यापनीय और उनका साहित्य, पृ० 2 2. कल्पसूत्रम्-सम्पा० विनयसागर, सूत्र 133-136 3. वही, सूत्र 203-223 . .