________________ 18 : जैनधर्म के सम्प्रदाय पशुओं को उन्होंने बन्धनमुक्त करा दिया तथा स्वयं विवाह किये बिना ही लौट गए / अरिष्टनेमि के इस त्याग ने उस समय समाज को झकझोरकर रख दिया। उनके इस त्याग के फलस्वरूप पशु-पक्षियों की हिंसा को भी हिंसा की परिधि में समाहित कर लिया गया। इस प्रकार अरिष्टनेमि ने अहिंसा की भावना को व्यापक आयाम दिया और वन्यजीवों की रक्षा का महत्त्वपूर्ण कार्य किया। पार्श्वनाथ : पार्श्वनाथ को वर्तमान अवसर्पिणी काल का तेईसवाँ तीर्थंकर माना गया है।' श्वेताम्बर एवं दिगम्बर दोनों परम्पराओं के मान्य ग्रन्थों में पार्श्वनाथ के माता-पिता के नामों को लेकर भिन्नता है। श्वेताम्बर परम्परा के मान्य ग्रन्थ समवायांगसूत्र, कल्पसूत्र तथा आवश्यकनियुक्ति में पार्श्वनाथ के पिता का नाम अश्वसेन तथा माता का नाम वामादेवी बताया गया है जबकि दिगम्बर परम्परा के मान्य ग्रन्थ उत्तरपुराण और पद्मपुराण में पार्श्वनाथ के पिता का नाम विश्वसेन तथा माता का नाम ब्राह्मी बताया गया है। पार्श्वनाथ के जन्म समय को लेकर भी श्वेताम्बर और दिगम्बर परम्परा में मतभेद है / श्वेताम्बर परम्परा के मान्य ग्रन्थकल्पसूत्र, चौपनमहापुरुषचरित्र, त्रिषष्टिशलाकापुरुषचरित्र तथा श्रीपार्श्वनाथचरित्र' आदि में जो उल्लेख मिलते हैं उनके अनुसार पार्श्वनाथ का जन्म पौष कृष्णा दशमी की मध्य रात्रि में हुआ था, किन्तु दिगम्बर परम्परा के मान्य ग्रन्थ-तिलोयपण्णत्ति तथा उत्तरपुराण के अनुसार पार्श्वनाथ का जन्म पौष कृष्णा एकादशी को हुआ था। यद्यपि दोनों परम्पराओं में पार्श्वनाथ की जन्म तिथि को लेकर मतभेद अवश्य है, किन्तु जो अन्तर बताया गया है वह कोई विशेष दूरी का नहीं है। 1. समवायांगसूत्र, 24 / 160 2. जैन, सागरमल-अर्हत्, पार्श्व और उनकी परम्परा, पृ० 11-12 3. कल्पसूत्रम्, 151 4. चउप्पनमहापुरिसचरियं, पृ० 258 . . 5. त्रिषष्टिशलाकापुरुषचरित्र, 9 / 3 6. सिरिपासनाहचरियं, 3 / 140 7. तिलोयपण्णत्ति, 4 / 576 8. उत्तरपुराण, 73 / 93