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( १७ ) है यहाँ तक कि वह पति की भी सम्पत्ति नहीं है । सम्पत्ति, इच्छानुसार स्वामी को नहीं छोड़ सकती, जयकि स्त्री अपने 'पति' को छोड सकती है। यही कारण है कि अग्निपरीक्षा के बाद सीताजी ने राम को छोडकर दीना लेली । गमचन्द्र प्रार्थना करते ही रहगये। क्या सम्पत्ति इस तरह मालिक की उपेक्षा कर सकती है ? स्त्रियों को सम्पत्ति कहकर अपनी मां बहिनों का घोर अपमान करने वाले मी जैनी कहलाते है, यह आश्चर्य की यात है।
यदि स्त्रिया सम्पत्ति है तो स्वामी के मरने पर उनका दूसरा स्वामी होना ही चाहिये, क्योंकि सम्पत्ति लावारिस नहीं रहती है। त्रियों को सम्पत्ति मान लेने पर तो विधवाविवाह की आवश्यकता और भी ज्यादा हो जाती है । हम पूरते हैं कि पति के मर जाने पर विधवा, लावारिस सम्पत्ति बनती है या उसका कोई स्वामी भी होता है। यदि आक्षेपक उसे लावारिस सम्पत्ति मानता है तब तो गवर्नमेन्ट उन विध. वानाको हथिया लेगी, क्योंकि 'अस्वामिक्रस्य द्रव्यस्य दायादो मेदिनी पतिः' अर्थात् लावारिस सम्पत्ति का उत्तराधिकारी राजा होता है। क्या धानेपक की यह मन्शा है कि जैनसमाज की विधवाएँ अग्रेजोको देढी जायें ? यदि वे किसीकी संपत्ति हैं तो प्रक्षेपक बतलाये कि वे किसकी सम्पत्ति है ? जैसे वाप की अन्य सम्पत्ति का स्वामी उसका बेटा होता है, क्या उसी प्रकार वह अपनी मां का मी स्वामी बने ? कुछ भी हो, स्त्रियों को सम्पत्ति मानने पर उनका कोई न कोई म्वामी अवश्य सिद्ध होता है और उसी को अधिकार है कि वह उस विधवा को किसी योग्य पुरुष के लिये देदे।
इस तरह त्रियोंको सम्पत्ति मानने का सिद्धांत जगली. पन से भरा होने के साथ विधवाविवाह-विरोधियों के लिये