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नहीं है फिर भी वह विवाह है । इस दाय का निवारण प्रान. पक न कर सका तो कहना है कि यह ब्राह्मविवाह का प्रकरण है । परन्तु हमाग कहना यह है कि ब्राह्मविवाह के अतिरिक्त बाकी विवाह, साक्षेपक के मतानुसार विवाह है कि नहीं? यदि वे विवाह हे और उनमें फिमी खाम विधिकी आवश्यकता नहीं है तो हमारा यह वक्तव्य निद्ध हो जाता है कि विवाह में किसी खास विधि की श्रावश्यकता नहीं है।
आक्षेप (ड)-छोटी पायवाली. विवाहिता स्त्री से उत्पन्न सन्तान को वर्ण के नमान कहना उन्मत्त प्रलाप है।
(श्रीलाल) ममाधान न्यायशास्त्र की वर्णमाला से शुन्य आक्षेपक को यहाँ समानता नहीं दीनती । यह उनकी मूर्खता केही अनुरूप है। कर्ण के जन्म में यदि कोई दोष था तो यही कि वे अविवाहिता की सन्तान थे। बालविवाह जब विवाद ही नहीं है तब उससे पैदा होने वाली सन्तान अविवाहिता की सन्तान कहलाई इसमें विषमता क्या है ?
आक्षेष (च)-दुधमुहे का अर्थ विवाद के विषय में नासमझ करने से तो शङ्कराचार्य भी दुधमुहे व हलाये क्योंकि इसी चर्चा में वे मण्डन मिश्र की स्त्री से हार थे। अगर तत्कालीन समाज उनका विवाह कर देता तो श्रापकी नजर में नाजा यज होता। (विद्यानन्द)
समाधान-अगर शङ्कराचार्य विवाह के विषय में कुछ नहीं जानते थे तो उनका विवाह हो ही नहीं सकता था। समाज जबर्दस्ती उनका विवाह कराने की चेष्टा करती तो वह विवाह तो नाजायज होता ही, साथ ही समाज को भी पाप लगता । विवाह के विषय में शङ्कराचार्य को दुधमुहा कहना अनुचित नहीं है। न्यायशास्त्र में 'वालानाम् बोधाय' को टीका