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( २१७) वाले पुरुष के साथ ही करना चाहिये । पागडु और कुन्ती के चारित्र से इस प्रश्न पर प्रकाश पडता है। (विद्यानन्द)
ममाधान-पाण्डु और कुन्नी का सम्बन्ध बलात्कार नहीं था जिससे हम पागडु को नीच और गनसी प्रकृति का मनुष्य कह सके। और ऐसी हालत में पागहु अपात्र नहीं कहा जा सकता । बलात्कार तो शैतानियत का उग्र और बीभत्सरूप है । बलात्कार सिर्फ कुशीन ही नहीं है, किन्तु वह घोर रानसी हिंमा भी है । इसलिये बलात्कार के उटा हरण में पारडु कुन्नी का नाम लेना भूल है। हम पलते है कि बलात्कार, विवाद है या नहीं? यदि विवाह है तो फिर विवाह करने की श्रावश्यकता क्या है ? अगर विवाह नहीं है तो वह कन्या अविवाहिना कहलाई. इसलिये उसका विवाद होना चाहिये।
माक्षेप (ब)-मिला। अगर दूध को जूठा करदं ता वह अपेय हो जाता है, यद्यपि इसमें दूध का अपराध नही है । इसी प्रकार बलात्कार मे दृषित कन्या भी समझना चाहिये । (विद्यानन्द)
समाधान-इम एमांत में अनेक पेसी विषमता है जो दूध के समान कन्या को त्याज्य सिद्ध नहीं करनी । पहिली तो यह है कि दूध जह है । १६ अगर नाली में फेंक दिया जाय तो दूध को कुछ दुःख्न न होगा। उमलिये हम दूध के निग्पगध होने पर भी उसकी तरफ से लापर्वाह गह सकते है । परन्तु कन्या में सुख दुःख है। उसकी पर्याद करना समाज का कर्तव्य है। इसलिये कन्या के निरपराध होने पर हम ऐसा कोई विधान नहीं बना सकते, जिससे उसको दुःख या उसका अपमान हो।
दूमरी विषमता भाज्य भांजक की है। स्त्री को हम