Book Title: Jain Dharm aur Vidhva Vivaha 02
Author(s): Savyasachi
Publisher: Jain Bal Vidhva Sahayak Sabha Delhi

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Page 225
________________ (२१५ ) जिस पनि की खबर ही नहीं मिली है उसके शाम वह कैमे जा सकती है? दीर्घप्रवामिन प्रवजितस्य प्रेतम्य या मार्गमनतीर्थान्याकांक्षत ॥४३॥ संवत्सर प्रजाता॥४४॥ नन पतिमांदयं गच्छेत् ।। ४५ ।। बहुप प्रत्यासत्र धार्मिकं गर्म समय कनिष्पमभायं वा । नदभावेऽप्यमांढय सपिगडं कुल्यं वासत्रम् ।। ४७॥ एतेषां पर एव क्रमः ॥ ४॥ दीर्घप्रवामी, संन्यामो या मर गया हो तो उसको स्त्री मत मासिकधर्म तक उसकी प्रतीक्षा करे। अगर मन्नान वाली हो तो एक वर्ष तक प्रतीक्षा करे. इसके बाद पति के भाई के साथ शादी करले। जो भाई पतिका नजदीकी दो, धार्मिक हो, पानन पोषण कर मके और पत्नी रहिन हो। अगर सगा भाई न हो तो पनि के वश का हो या गांव का हो। यहाँ तो श्रीलाल जी पति के पास जाने की बात न कहेंगे? क्योंकि पनि ना संन्यामी हो गया है या मर गया है। फिर पति के भाई के पास जाने की प्रामा क्यों है ? अपने भाई या पिता या श्वसुर के पास जाने की या नहीं? फिर पनि का भाई भी कैमा ? जिसके पनी न हो। क्या अब भी श्रीलाल जी यहाँ विवाह की बात न समझेगे।। आक्षेप (3)-प्राचार्य सोमदेवजी ने जिन म्मृतिकागे के विषय में लिखा है वह सब चर्चा मगाई बाद की है। वैष्णवों के किसी अन्य में भी विधवाविवाह की आमा नहीं है। (श्रीलाल) समाधान-"विकृनपत्यूदापि पुनर्विवाहमहतीति स्मृ. तिकाग" विकृतपति के साथ विवाही गई स्त्री भी पुनर्विवाह कर सकती है। स्मृतिकारों के इस वक्तव्य में सगाई की ही धुन लगाये रहने वाले श्रीलाल जी का साहस धन्य है।

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