Book Title: Jain Dharm aur Vidhva Vivaha 02
Author(s): Savyasachi
Publisher: Jain Bal Vidhva Sahayak Sabha Delhi

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Page 230
________________ ( २२०) श्रीलाल जी कहते है कि दक्षिण में तलाक का रिवाज ही नहीं है । सौभाग्य से दक्षिणप्रान्त अाज भी बना हुआ है। कोई भी आदमी वहाँ जाकर देख सकता है कि चतुर्थ पचम सेनवाल श्रादि दिगम्बर जैनियों में विधवाविवाह और तलाक का रिवाज आमतौर पर चालू है या नहीं। बल्कि वहाँ पर विधुर कुमारियों के साथ शादी नहीं करने । इमलिये कुमारियों के साथ पहिले किसी अन्य पुरुष की शादी करदी जानी है इसके बाद नलाक दिलाया जाना है फिर उस विधुर के नाथ उस नलाफ वाली स्त्री की शादी होनी है। इसके अनिरिक्त अन्य स्त्रियाँ भी तलाक देती है, पुनर्विवाह करनी है। दक्षिणप्रान्त में नलाक का अभाव बनला कर श्रीलाल जी या नो कूपमण्डकता का परिचय दे रहे हैं या समाज को धोखा दे रहे है। तीसवाँ प्रश्न । पुराणों में विधवा-विवाह का उल्लेख क्यों नहीं मिलता, इसके कारणोंका सप्रमाण दिग्दर्शन किया था। दोनोंही आक्षे. पको से यहां पर भी कुछ खण्डन नहीं बन सका है। परन्तु इस प्रश्नमें विद्यानन्द जीने तो सिर्फ अपनी अनिच्छाही ज़ाहिर की है, परन्तु पण्डित श्रीलालजी ने अण्ड बण्ड लिन माग है। बल्कि धृष्टताका भी पूर्ण परिचय दिया । जैनजगत् आदि पत्रों का काला मुंह करने का उपदेश दिया है । खैर, यहाँ हम . संक्षेप में अपना वक्तव्य देकर आक्षेपोंका उत्तर देंगे। अ-पुराणों में विधवा-विवाह का उल्लेख नहीं है और विधुर विवाह का उल्लेख नहीं है । परन्तु यह नहीं कहा जास. कता कि पहिले जमाने में विधुर विवाह नहीं होते थे। न यह कहा जासकता है कि विधवाविवाह नहीं होते थे।

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