Book Title: Jain Dharm aur Vidhva Vivaha 02
Author(s): Savyasachi
Publisher: Jain Bal Vidhva Sahayak Sabha Delhi

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Page 233
________________ (२२३) विधवाविवाहका खण्डन नहीं किया। इससे भी विधवाविवाह की जैनधर्मानुकूलता मालूम होती है । एप्रथमानुयोग, पुण्य और पापका फल बतलाने के लिये है, इसलिये उसमें गतिरिवाजों का उल्लेख नहीं होता है। इसलिये उसमें प्रेम किसी भी विवाहका उल्लेख नहीं है जो समाधारण पुराय या पुराय फल का योनक न हो । ऊपर हम कह चुके हैं कि विधवाविवाह में ऐसी असाधारणता न होने में उसका उल्लेख नहीं हुआ। ऐ-ऐसी बहुन बाते है जो जैनधर्म के अनुकूल है, शास्त्रोक्त है, परन्तु पुराणों में जिनका उल्लेख नहीं है-जैसे विवाह में होनेवाली सप्तपदी, वेंधव्यदीता, दीक्षान्वय क्रियाण पादि। ओ-परस्त्रीमेवन आदि का जिम प्रकार निन्दा करने के लिये उल्लेख है, उस तरह शास्त्रमें विधवाविवाहका खण्डन करने के लिए उनख नहीं है। श्रो-गगवान महावीर के द्वारा जितना प्रथमानुयांग कहा गया था उमना आजकल उपलब्ध नहीं है। सिर्फ मोटी मोटी घटनाएँ रह गई है इसलिए गी विधवावियाह सरीखी माधारण घटनाओं का उल्लेख नहीं है । ___ उपर्युक्त बारह छदकों में मेरे बक्तव्य का सागंश आगया है और श्रादेषों का पगडन भी हो गया है। फिर भी कुछ याकी न रह जाय, इसलिये आक्षेपकोंक निःसार आक्षपोंका भी ममापान किया जाता है । लेखनशैली की अनभिज्ञता से श्रीलालजी ने जो श्राप किये हैं उन पर उपेक्षा दृष्टि रक्खी जायगी। आक्षेप (क)- दमयन्तीने अपने पति नलको हूँढने क

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