Book Title: Jain Dharm aur Vidhva Vivaha 02
Author(s): Savyasachi
Publisher: Jain Bal Vidhva Sahayak Sabha Delhi

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Page 234
________________ (२२४) लिये स्वयम्बर रच दिया तो क्या हिन्द शास्त्रों में पुनर्विवाह सिद्ध होगया? [श्रीलाल समाधान-दमयन्ती पुनर्विवाह चाहती थी, यह हम नहीं कहने. परन्तु उस समय हिन्दुओं में उसका रिवाज था यह घात मिद्ध होजाती है । दमयन्ती के व्ययम्बर का निमन्त्रण पाकर किमीने इसका विरोध नहीं किया-मिर्फ दमयन्ती पति नल को छोड़कर और किमी को इसमें आश्चर्य भी न हुया। सब राजा महागजा म्वयम्बर के लिये श्राये । यदि विधवा. विवाहका रिवाज न होता तो राजा महागजा क्यों आने ? आक्षेप (ख) अन्तगल में चाहे धर्म कर्म उठ जाय परन्तु सजातीयधिवाह नष्ट नहीं हुश्रा करना है। श्रीलाल समाधान-अन्तगालमें धर्मकर्म उठ जाने पर भी अगर सजातीय विवाह नष्ट नहीं हुआ करता तो इससे सिद्ध हो जाता है कि सजातीय विवाह से धर्मधर्म का कुछ मम्बन्ध नहीं है। ऐसी हालत में सजानीय विवाह का कुछ महत्व नहीं रहता। - सजातीय विवाह का बन्धन तो पौराणिक युग में कमी रहा ही नहीं । जातियों तो सिर्फ व्यापारिक क्षेत्र के लिये थीं। भगवान् ऋपभदेव के समय से जानियाँ है और उनके पुत्र सम्राट भरतने ३२००० विवाह म्लेच्छ कन्याओं के साथ श्यि थे। तीर्थडगे ने भी म्लेच्छों के नाथ वैवाहिक सम्बन्ध किये थे । अनुलोम और प्रतिलोम दोनों तरह के उदाहरणांसे जैन. पगण भरे पड़े हैं। विजातीयविवाह और म्लेच्छ कन्याओं से होने वाले विवाहके फलस्वरूप होने वाली सन्तान मुक्तिगामी हुई है इसकेभी उदाहरण और प्रमाण बहुतसे है। यहाँ विजा. तीय विवाह का प्रकरण नहीं है । विजातीय विवाह की चर्चा उठाकर श्रीलाल जी धूप के डरसे भट्टी में कूट रहे हैं । अन्त.

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