Book Title: Jain Dharm aur Vidhva Vivaha 02
Author(s): Savyasachi
Publisher: Jain Bal Vidhva Sahayak Sabha Delhi

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Page 240
________________ ( २३०) किसी को नहीं रखना यादि शायान विधान व्यवहार धर्म की विविधता बतलाते है। सामाजिक नियमों के विषय में विद्यानन्द कहते है कि "सामाजिक नियम व्यवहार बम के सावक है अतः उनमें तबदीली करना मान मार्ग की ही तबदीनो , "सामाजिक नियमों में रहोवत करने और मानमार्ग में रहाबदल करने का एक ही अर्थ है।" परन्तु इनके महयोगो पगिडत श्रीलाल जी कहते है कि "सामाजिक नियम भिन्न भिन्न देशों में और मिन्न भिन्न कालों में और भिन्न भिन्न जानियों में प्रायः गिन गिन हुश्रा करते हैं।... • लौकिक विधि उनी रूप में करना चाहिये जैसी कि जहाँ हो" । इस तरह ये दोनो श्रापक श्रापम में ही भिड गये है। यह कहने की जन्नत नहीं कि विद्यानन्दजी ने सामाजिक नियम का कुछ अर्थ ही नहीं समझा और वे प्रलापमात्र कर गये है । सामाजिक नियमां के विषय में श्रीलालजी का कहना ठीक है और वह हमारे वक्तव्य की टोका मात्र है । श्रीलालजी कहते है कि नामाजिक नियम धर्म की छाया में ही रहते है। हमने भी लिग्ना था कि सामाजिक नियम धर्मपोषक होना चाहिये । अव व्यवहार धर्मविष यक मतभेद रह जाता है, इसलिये उसकानेपों का नगाधान किया जाता है। आक्षेप (क)-व्यवहार धर्म निश्चय का साधक है। न ससारी आत्मा की अवस्था पलटती है न निश्चय वर्म की, न उसके साधक व्यवहार धर्म की । (श्रीलाल) समाधान-किसी भी द्रव्य की शुद्धावस्था दो तरह की नहीं होती परन्तु अशुद्धावस्था अनेक तरह की होती है, क्योंकि शुद्धावस्था स्वापेक्ष है और अशुद्धावस्था परापेक्ष है। पर द्रव्य अनन्त है इसलिये उनके निमित्त से होने वाली

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