Book Title: Jain Dharm aur Vidhva Vivaha 02
Author(s): Savyasachi
Publisher: Jain Bal Vidhva Sahayak Sabha Delhi

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Page 213
________________ ( २०३ ) पाया जाता है तो दूसरी जगह ब्रह्मचर्य की महत्ता के लिये दोनों का निषेध भी पाया जाता है। नगर परिस्थिति की दृष्टि में विचार किया जाय तो इन मवका समन्वय हो जाता है। खैर, मनुम्मृति तथा अन्य स्मृनियों में विधवाविवाह या स्त्री पुनर्विवाह के काफी प्रमाण पाये जाते हैं। उनमें से कुछ ये है या पन्या वा परित्यक्ता विधवा स्त्रयेच्छ्या। उत्पादयत्पुन न्वा स पौनर्भव उच्यते ॥ मनुम्मति:-२७५ ॥ मा नेटक्षनयोनिः म्याद् गनप्रत्यागतापि वा। पौनर्भवन भी सा पुन संस्कारमर्हति ॥ ६-१७६॥ पति के द्वागछोडी गई या वियत्रा, अपनी इच्छा से दूमरे की भार्या हो जाय और जो पुत्र पैदा करे वह पोनर्भव कहला. यग। यदि वह स्त्री अक्षतयांनि हो और दूसरे पति के साथ विवाह करे तो उनका पुनर्विवाह सम्झार होगा। (पोनर्भवन भर्ना पुनर्विवाहास्यं संस्कारमहति ) अथवा अपने कोमार पति को छोडकर दूसरे पति के माथ चली जाय और फिर लोटकर उसी कौमार पति के साथ बाजाय नो उनका पुनर्विवाह सस्कार होगा । ( यहा कौमारं पतिमुत्सृज्यान्यमाश्रिन्य पुनस्तमेव प्रत्यागता भवति तदा नेन कौमारेण भापुनविवाहा. स्यं संस्कारमहति)। यहां पुनर्विवाह को सम्कार कहा हे इसलिये यह सिद्ध है कि वह व्यभिचाररूप या निधनीय नहीं है। हिन्दुशास्त्रों के अनुसार कलिकाल में पागशम्मृति मुख्य है। 'कलो पाराशगः स्मृताः' । पाराशरस्मृति में तो पुनर्विवाह मिनकुल स्पष्ट है नष्टे मृते प्रवजित क्लीवे च पतिते पती। पचखापत्सु नारीणां पतिरन्यो विधीयते 1 ४-३० ॥

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