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( २०४) पति के खो जाने पर, मर जाने, मन्यामी होजान, नपु. मक होने तथा पनित हाजाने पर स्त्रियों को दुमग पनि कर लने का विधान है।
पनि शब्द का 'पनौ' रूप नहीं होना-यह यहाना निकाल कर श्रोलालजी नया अन्य लोग 'अपतो' शब्द निका लते है और अपनि का अर्थ करते हैं-जिमकी सिर्फ गार्ड हुई हा । परन्तु यह शंग भ्रम है । श्योंकि हम श्लोक को जनाचार्य श्रीअमित गनि न विधवाविवाह के समर्थन में ही उद्धत किया है । देखिये धर्मपरीक्षा -
पत्यो प्रजिते लोये प्रनप्टे पतिते मृत। पचम्बापत्सु नारीणां पनिग्न्या विधीयते ॥ ११-१२॥
मरी बात यह है कि अगर यहाँ 'अपनो' निकलना होता तो 'अपतिरन्या विधीयन ऐमा पाठ रखना पडना जा कि यहाँ नहीं है और न छन्दोमग के कारण यहाँ प्रकार निकाला जा सकता है।
नीसरी वान यह है कि अपनि शब्द का अर्थ जिसकी सिर्फ सगाई हुई हो ऐमा पति' नहीं होना। अपनि शब्द के इस अर्थ के लिये काई नमना पेश करना चाहिये ।।
चौथी बात यह है कि पनि शब्द के रुप हरि लगेखे भी चलने है । क्योंकि पति का अर्थ जहाँ साधारणतः स्वामी, मानिक यह होता है वहाँ ममाम में ही घि सना होती है इसलिये वहाँ 'पतौ' ऐसा रूप नहीं बन सकना । परन्तु जहाँ पति शब्द का लाक्षणिक अर्थ पति अर्थात् 'विवाहित पुरुष' अर्थ लिया जाय वहाँ असमास में भी घि संज्ञा हो जाती है जिससे पतो यह रूप भी बनता है। 'पति समास पर्व' इस मत्र की तत्वबोधिनी टीका में ग्वुलासा तौर पर यह बात लिख दी गई है और उसमें पाराशरस्मृनि का "पनिते पनो"