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(२१०) से लिया गया है। हमारे विषय में अर्थ बदलने की कुकल्पना आप भले ही करें, परन्तु अनुवादक के विषय में इस कल्पना की कोई ज़रूरत नहीं है । इसके अनुवादक वेदरत विद्याभास्कर, न्यायतीर्थ, सांख्यतीर्थ और वेदान्त विशारद है।।
दूसरी बात यह है कि 'विदलु लाभे' धातु का प्रयोग विवाह अर्थ में होता है। मनुस्मृति में विन्देन देवरः का पर्याय वाक्य भर्तुः सोदर भ्राता परिणयेत् किया है। इसी तरह श्लोक 8-६० में 'विन्देत सदृश पति' का 'वर स्वयं वृणीन' पर्याय वाक्य दिया है। खुद कौटिलीय अर्थशास्त्र में विदल धातु का प्रयोग वरण के अर्थ में हुआ है। जैसे-ततः पुत्रार्थी द्वितीया विन्देत अर्थात् पहिली स्त्री से अगर १२ वर्ष तक पुत्र पैदा न हो तो पुत्रार्थी दूसरी शादी करले । यहाँ विन्देत का अर्थ शादी करे ही है । इसी तरह और भी बहुत से प्रयोग है । पहिले हमने थोडे से प्रमाण दिये थे, अब हम जरा अधिक देंगे। उन में ऐसे प्रमाण भी होंगे जिनमें विदुल का अर्थ पास जाना न हो सकेगा।
"मृते भतरिधर्मकामातदानीमेवास्थाप्याभरणं शुल्क शेषं च लभेत ॥ २५ ॥ लब्ध्वा वा विन्दमाना सवृद्धिकमुभय दाप्येत ॥ २६ ॥ अर्थात् पति के मरने पर ब्रह्मचर्य से रहने वाली स्त्री, अपना स्त्री धन और अवशिष्ट शुल्क (विवाह के समय प्राप्त धन ) ले ले । अगर इस धन को प्राप्त कर वह (विधवा ) विवाह करे तो उससे व्याज सहित वापिस ले लिया जाय।
पाठक विचार कि यहाँ"विन्दमाना" का अर्थ विवाह करने वाली है न कि पति के पास जाने वाली क्योकि पति तो मर चुका है। और भी देखिये
'कुटुम्बकामातु श्वसुरपतिदत्त निवेशकाले लभेत ॥२७॥