Book Title: Jain Dharm aur Vidhva Vivaha 02
Author(s): Savyasachi
Publisher: Jain Bal Vidhva Sahayak Sabha Delhi

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Page 221
________________ ( २११ ) निवेशकालं हि दीर्घप्रवासे व्याख्याम्यायः ||२६|| यदि विधवा दूसरा घर बसाना चाहे अर्थात् पुनर्विवाह करना चाहे तो श्व सुर और पति द्वारा दी हुई सम्पत्ति को वह विवाद समय में ही सकती है। विवाह का समय हम दीर्घ प्रवास के प्रक रण में कहेंगे। इसी दीर्घप्रवास प्रकरण के वाक्य हमने प्रथम लेब में उद्धृत किये थे। इससे मालूम होता है कि वहाँ पुनर्विवाह का ही जिकर है न कि पनि के पास जाने का ' "श्वसुर प्रातिलोम्येन वा निविष्टा श्वसुर पतिदत्तं जीयेन" ॥ २६ ॥ सुरकी इच्छा के विरुद्ध विवाह करने वान्ती वधू से श्वसुर और पति से दिया गया धन से लिया जाय । इससे मालूम होता है कि महाराजा चन्द्रगुप्त के गल्य में सुर अपनी विधवा वधू का पुनर्विवाह कर देना था । अगर सुर उसका पुनर्विवाह नहीं करता था तो वह बधू ही अपना स्त्रीधन छोड़कर पुनर्विवाद कर लेती थी । शातिहस्तादभिप्राया ज्ञातयां यथागृहीतं दद्युः ॥ ३० ॥ न्यायोपगतायाः प्रतिपत्ता स्त्रीधनं गोपायेत् ॥ ३१ ॥ अगर उसके पीहर वाले ( पिता भ्राता आदि ) उसके पुनर्विवाह का प्रबन्ध करें तो वे उसके लिये हुए धन को दे दें, क्योंकि न्यायपूर्वक रक्षार्थ प्राप्त हुई स्त्री की रक्षा करने वास्ता पुरुष उसके धन की भी रक्षा करे । पतिद्वायं विन्दमाना जीयेन ॥ ३२ ॥ धर्मकामाभुञ्जीत ॥ ३३ ॥ दूसरे पति की कामना वाली स्त्री पतिका हिस्सा नहीं पा सकती और ब्रह्मचर्य से रहने वाली पासकती है। पुत्रवती विन्दमानास्त्रीधनं जीयेत ॥ ३४ ॥ नत्त स्त्रीधन पुत्रा हरेपुः || ३५ || पुत्रमरणार्थ वा घिन्टमाना पुत्रार्थं स्फाती कुर्यात् ||३६|| कोई स्त्री पुत्र वाली होकरकंभी अगर पुनर्विवाद

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