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आक्षेप (क) प्रश्नकर्त्ता का प्रश्न समझ कर तो उत्तर देते। जो मनुष्य प्रवर्गावन धारण नहीं करना उसका विवाह करके क्या ? वह तो माता बहिन को स्त्रो समझता है । (श्रीलाल ) समाधान- हमारे उपयुक्त वक्तव्यको पढ़कर पाठक दी विचारों कि प्रश्न कौन नहीं समझा है। जिसने ब्रह्मचर्यणुबन नहीं लिया है, उसे श्रवून देने के लिये ही ती विवाह है। इस यापक ने विवाद को ब्रह्मचर्यधून रूप माना है । यहाँ कहना है कि ब्रह्मचर्यवून रहिन का विवाह क्यों करना श्रर्थात् ब्रह्मचर्यवून क्यों देना ? मतलब यह कि प्रवृतीको चुन देना निरर्थक है ! कैसा पागलपन है !
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आक्षेप (ख) क्या दीक्षा और विवाह यही दो श्रव साएँ हो सकती है । ( विद्यानन्द ) समाधान - जो दीक्षा नहीं लेता और विवाह भी नहीं करना उससे कोई जबर्दस्ती नहीं करना । परन्तु उसे विवाह करने का अधिकार है। अधिकार का उपयोग करना न करना उसकी इच्छा के ऊपर निर्भर है। उपयोग करने से वह पापी
न कहा जायगा ।
आक्षेप (ग) जब श्राप विबुर विधवा श्रादि जिल किसी को विवाह करने का अधिकार देने है तब तो एक वर्ष की अबोध बच्ची भी विवाह करावें । आपने नी बाल, वृद्ध, अनमेल विवाह की भी पीठ ठोकी । ( विद्यानन्द ) समाधान - उससे तो यह बात कही गई है कि वैधव्य, विवाह में बाधक नहीं है ११ वर्ष की बची का विवाह तो हा ही नहीं सकता यह हम अनेक बार कह चुके है । बालविवाह का जैनधर्म और हम विवाह ही नहीं मानते हैं । विवाह के अन्य अन्तर बहिर निमित्त मिल जाने पर कोई भी विवाह कर