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(१७) तो विधवाओं के लिये भी अपर्तव्य नहीं कहा जा सकता।
आक्षेप (ड)-गोन जाने वाले ६०८,जीवों की संख्या में कमी न पाजाय इसलिये हम विधवाविवाह का विरोध करते है । (विद्यानन्द)
समाधान-जैनधर्मानुमाछः महीन पाठ समय में ६० जीव मोक्ष जाने का नियम अटल है। उम्मकी रक्षा के लिये आक्षेपक का प्रयत्न हास्याम्पद है। फिर आक्षेपक जहाँ (भरत. क्षेत्र में) प्रयत्न करता है वहाँ तो मोक्षद्वार अभी बन्द ही है। तीसरी बात यह है कि विधवाविवाह से मोक्ष का मार्ग वन्द नहीं होता । शास्त्रों की आशाएँ जो पहिले लिखी जा चुकी हैं और सुदृष्टि का जीवन इस बात के प्रबल प्रमाण हैं।
आक्षेप (च) सव्यमाची, तुम औरतों की भॉति बिलख विलख कर क्यों गेरहे हो ? तुम्हें औरत कौन कहता है ? तुम अपने आप औरत बनना चाहो ता ११ डबल के बताशेभेनदो। यहाँ से एक ताबीज भेजदिया जायगा। तुम नोन औरत हो न मर्द । सव्यसाची (अर्जुन ) नपुंसक हो । (विद्यानन्द)
समाधान-आक्षेपकों को जहाँ अपनी प्रधानता का मात्राधिक परिचय होगया है वहाँ उनने इसी प्रकार गालियाँ दी है । ये गालियाँ हमने इनके भडपन की पोल खोलने के लिये नहीं लिखी है परन्तु इनके टुकडखोरपन को दिखाने के लिये लिखी हैं। आक्षेपक १। पैसे के बताशों में मुझे स्त्री बना देने को या दुनिया में प्रसिद्ध कर देने को तैयार है। जो लोग शपैसे में मर्द को स्त्री बनाने के लिये तैयार हैं वे भरपेट रोटियाँ मिलने पर धर्म को अधर्म और अधर्म को धर्म कहने के लिये तैयार हो जाये तो इसमें क्या आश्चर्य है ! जो लोग इन पंडितों को टुकड़ों का गुलाम कहते है वे लोग कुछ नरम शब्दों का