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स्लेच्छ और सुदृष्टि के मोक्षगमन तथा पूज्यपाद श्रीर विषेण श्रादि श्राचायों के प्रमाणां म व्यभिचारजान श्रादि भी मोक्ष जा सकते हैं यह बात लिखी जा चुकी है ।
इक्कीसवाँ प्रश्न |
अल्पसख्या होने से मुनियों को श्राहार में कठिनाई होनी हैं । यद्यपि आजकल मुनि नहीं है, फिर भी अगर मुनि हाँ तो वे सब जगह विहार नहीं कर सक्से क्योंकि अनेक प्रान्तों में जैनी है ही नहीं थोर जहां है भी वहां प्रायः नगरों में ही है । मुनियों में अगर इतनी शक्ति हो कि वे जहाँ चाहे जाकर नये जैनी बनावें और समाज के ऊपर प्रभाव डालकर उन नये जैनियों को समाज का श्रह स्वीकार करावें तो यह समस्या हल हो सकती है । परन्तु हर जगह तुरन्त ही नये जैनी बनाना और उद्दिष्टत्यागपूर्वक उनसे आहार लेना मुश्किल है, इसलिये जैन समाज को बहुसख्यक होने की आवश्यकता है। विधवाविवाह सख्यावृद्धि में कारण है, इसलिये विधवाविवाह मुनिधर्म के अस्तित्व के लिये भी श्रन्यतम साधन है ।
आक्षेप ( क ) - जब मार्ग में जैन जनता नहीं तब जो भक्त गृहस्थ अपना काम धन्धा छोडकर मुनिसेवामें लगे उम के समान दूसग पुराय नहीं । मुनियों को हाथ से रोटी बनाकर खाने की सलाह देना धृष्टता है ।
समाधान --मुनियों को ऐसी सलाह देना धृष्टता होगी परन्तु ढोंगियों को ऐसी सलाह देना परम पुण्य है । जैनशास्त्रों के अनुसार उद्दिष्टत्याग के बिना कोई मुनि नहीं हो सकता और उद्दिष्टत्याग इसलिये कराया जाता है कि वे श्रारम्भजन्य हिंसा के पाप से बचें। निमन्त्रण करने में विशेषारम्भ करना पडता है । उद्दिष्टत्याग में सामान्य श्रारम्भ ही रहता है