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(१८१) का यह स्थल नहीं है। ऐसी अप्रस्तुत बातों को उठाकर आक्षे. पक, अर्थान्तर नामक निग्रहस्थान में गिर गया है ।
आक्षेप (घ)-नोटिसबाजी करते करते किसका दम निकला जाता है। गर्मी की बीमारी मुम्बई में हो सकती है। यहाँ ता नपायी ठाठ है । (विद्यानन्द)
__ समाधान-नोटिसबाजी का गर्मी की बीमारी से क्या मम्बन्ध ? और गर्मी की बीमारी के अभाव का नवाबीठाठ से क्या सम्बन्ध ? ये बीमारियाँ तो नवायी ठाठ वालों को ही दुआ करती हैं। हाँ, इस वक्तव्य से यह यान जरूर सिद्ध हो जाती है कि आपक, समाजसेवा की श्रोट में नवाची ठाठ से खर मोज उडा रहा है सो जब तक समाज अन्धी और मूढ हे नय तक कोई भी उसके माल में मौज उडा सकता है।
प्राक्षेप (ट)-दुनियाँ दूसरों के दोष देखनी है परन्तु दिल खोजा जाय तो अपने से बुग कार्ड नहीं है।
(विद्यानन्द) ममाधान-क्या इस बात का ख़याल श्राक्षेपक ने सुधारकों का सते समय भी किया है ? मुनिषियों के विरुद्ध जो हमने लिखा है वह इसलिये नहीं कि हमें कुछ उन गरीय दीन जन्तुओं से द्वेष है। वे चेचारे तो भूख और मान कपाय के सताये हुए अपना पेट पाल रहे है और कषाय की पूर्ति कर रहे है। ऐसे निकृष्ट जीव दुनिया में अगणित है। हमाग तो उन सब सं माध्यम्थ्य भाव है । यहाँ जो इन ढोंगियों की ममालोचना की है वह सिर्फ इसलिये कि इन ढोंगियों के पोछे मया मुनिधर्म बदनाम न हो जाय । अनाद्यविद्या को बीमार्ग से लोग यों ही मर रहे है। इस अपथ्य सेवन से उनकी योमारी और न चढ जाय।