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सत्रहवाँ प्रश्न "पाँच लाग्न औरतों में एक लान नेतालीस हजार विधवा या शोमा का कारण है ?" इसके उत्तर में हमन कहा था कि--"वैधव्य में जहाँ त्याग है वहाँ शोभा है अन्यथा नहीं। जहाँ पुनर्विवाहका अधिकार नहीं, वहाँ उमका त्याग हो क्या?" इस प्रश्न का उत्तर प्राक्षा नहीं दे सके हैं। श्री लालजी नो नगाक की बात उठा कर गुगेप के नायदान मूंघने लग लय है। 'विधवाविवाह घाली ऊँची नहीं हो सकती' उम
आर्यिका बनने का अधिकार नहीं, आदि वाक्यों में कोई प्रमाण नहीं है। हम इसका पहिले विवेचन कर चुके है । आगे भो करेंगे।
आक्षेप (क)-विधवा गृहस्थ है, इमलिये यह सौभाग्यवतियों से पूज्य नहीं हो पाती।
समाधान-गृहम्य तो प्रत्मचर्यप्रतिमाधारी भी है। फिर भी माधारण लोगों की अपेक्षा उम्मका विशेष सन्मान होता है। इसी प्रकार विधवाओं का भी होना चाहिये, परन्तु नहीं होनामका कारण यही है कि उनका वैव्य त्यागरूप नहीं है। अगर कोई विधुर विवाहयोग्य होने और विवाह के निमित्त मिलने पर भी विवाह नहीं करता तो वह प्रशमनीय होता है। इसी प्रकार पुनर्विवाह न करने वालो विधवा भी प्रशं. मापात्र हो सकती है अगर उन्हें पुनर्विवाह का अधिकार हो और वे विवाह योग्य हो तो । हाँ, उन, विधुगें की प्रशसा नहीं होती जो चार पॉच बार नक विवाद कग चुकं दे अथवा विवाह की कोशिश करते २.अन्नमें 'अगूर रहे है' की कहाचत चरितार्थ करते हुए, अन्त में ब्रह्मचारी परिग्रहत्यागी श्रादि चन गये है । विवाह की पूर्ण सामग्री मिल जाने पर भी जो