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( १४२) कुल सिद्ध होंगे उनी अपेक्षा से ग्राहा है। बाकी अपेक्षाओं से अग्राह्य । प्रत्येक पदार्थ के साथ सप्तभगी लगाई जामकती हैं। अगर नास्तिभंग लगाते समय कोई कहे कि प्रत्येक पदार्थ को यदि नास्तिरूप कहोगे तो अमितरूप किसे कहोगे? तव इसका उत्तर यही होगा कि अपेक्षान्तर से यही पदार्थ अग्निरूप भी होगा। इसी प्रकार एक कार्य किमी अपेक्षा से ग्राह्य, किसी अपेक्षा से अग्राहा है। जो लोग पूर्णब्रह्मचर्य का पालन नहीं कर सकते उनकी विधवाविवाह ग्राह्य है। पूर्ण ब्रह्मचारियों को अग्राह्य।
बारहवाँ प्रश्न __ "छोटे छोटे दुधमुंहे बच्चों का विवाह धर्मविरुद्ध है या नहीं" ? इस प्रश्न के उत्तर में हमने ऐसे विवाह को धर्मविरुद्ध कहा था, क्योंकि उसमें विवाह का लक्षण नहीं जाना । जब वह विवाह ही नहीं तो उससे पैदा हुई सन्तान कर्ण के समान नाजायज कहलाई । इसलिये ऐसे नाममात्र के विवाह के हो जाने पर भी वास्तविक विवाह की आवश्यकता है।
आक्षेप (क)-गद्गबाहुसहितामें लिखा है कि कन्या १२ की और वर सोलह वर्ष का होना चाहिये। इससे कम और अधिक विकार है । ( श्रीलाल )
समाधान-मद्रबाहु श्रुतक्वली थे । दिगम्बर सम्प्र. दाय में उनका बनाया हुआ कोई ग्रन्थ नहीं है। उनके दो हजार वर्ष बाद एक अज्ञानी धूर्त ने उनके नाम से एक जाली ग्रन्थ बनाया और उसपर भद्रबाहु की छाप लगादी । सैर, पुराणों में शायद ही कोई विवाह १२ वर्ष की उमर में किया हुआ मिलेगा। धर्मशास्त्र तो यह कहता है कि जितनी अधिक उमर तक ब्रह्मचर्य रहे उतना ही अच्छा । दूसरी बात यह है कि ठीक