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(१४०) समाधान-----जहाँ पात्र (द्रव्य ) अपान की अपेक्षा है वहाँ सर्वथा शब्द का प्रयोग नहीं होना है । सुधारक यही नो कहते है कि द्रव्य (पात्र) क्षेत्र काल भाव की अपेक्षा से किमी कार्य की धर्मानुकूलता या धर्मविरुद्धना का निर्णय करना चाहिये । इसलिये एक पात्र के लिये जो धर्मविरुद्ध है दूमरे के लिये वही धर्मानुकूल हो सकता है। ब्रह्मचर्य प्रनिमा धारण करने वाली विधवा का विवाह धर्मविरुद्ध है, अन्य विधवाओं को धर्मानुकूल है । यही तो पात्रादि की अपेक्षा है।
आक्षेप (ग)- सव्यसाची ने विवाह को धर्मानुकूल अर्थात् धार्मिक तो मान लिया । सालभर पहिले तो उसे मामाजिक, सामाजिक चिल्लाते थे।
समाधान-ब्रह्मचर्य प्रतिमा से नीचे कुमार कुमारी और विधवा विधुर के लिये विवाह धर्मानुकूल है-यह मैं सदा से कहता हूँ। परन्तु धर्मानुकुल और धार्मिक एक ही बात नहीं है । व्यापार करना, घूमना, भोजन करना, पेशाब करना
आदि कार्य धर्मानुकूल ता है परन्तु धार्मिक नहीं है। धर्म का अङ्ग होना एक बात है और धर्ममार्ग में बाधक न होना दूसरी बात है।
आक्षेप (घ)-बहुन अनर्थ को रोकने के लिये थोड़ा अनर्थ करने की आज्ञा जैनधर्म नहीं देता। + समाधान-मैं पहिले ही लिख चुका हूँ कि एक अनर्थ को रोकने के लिये दूसरा अनर्थ मत करो परन्तु महान अनर्थ रोकने के लिये अल्प अनर्थ कर सकते हो । व्यभिचार अनर्थ रोकने के लिये ही तो विवाह अनर्थ किया जाता है । जिनने प्रवृत्यात्मक कार्य है वे सब अनर्थ या पाप के अंश है। जब वे कार्य अधिक अनर्थों को रोकने वाले होते हे तय वे अनर्थ या पाप शब्द से नहीं कहे जाते । परन्तु है तो वे पाप