________________
लाया। इसलिये अब श्राक्षेपक को या नो बालविवाह नाजा. यज मानना चाहिये या स्त्री पुनर्विवाह जायज ।
चालविवाह को नाजायज सिद्ध करने में किमी ग्वाम प्रमाण के देने की जरुरत नहीं है । विवाह का लक्षण न जाने से ही वह नाजायज हो जाता है।
प्राक्षप (ज)-श्राश्चर्य है कि कर्ण को श्राप वालविवाह की सन्तान कह कर नाजायज कह रहे है । वह नो गान्धर्व विवाह की सन्तान होने से नाजायज माना गया है।
समाधान-कुछ उत्तर न सूझने पर अपनी तरफ से झूटी वात लिखकर उसका खण्डन करने लगना श्राक्षेपक की श्रादत मालुम होनी है, या आक्षेपक में हमारे वाश्य को समभने की योग्यता नहीं है। हमने कर्ण को अविवाहिता की सन्तान कहा है और बालविवाह में विवाह का लक्षण नहीं जाता इसलिये उसकी सन्तान भी अविवाहिता की सन्तान कहलायी । कर्ण में और बालविवाह की मन्तान में अविवा. हितजन्यना की अपेक्षा समानना हुई । इससे कर्ण को चाल. विवाह को सन्तान समझ लेना श्रादेषक की अक्ल की खूबी है। आक्षेपक को उपमा, उपमेय, उपमान समान धर्म का बिलकुल ज्ञान नहीं मालूम होता।
कर्ण अगर. गान्धर्व विवाह की सन्तान होते तो उन्हें छिपाकर बहा देने की ज़रूरत न होती, अथवा पाँचों पॉडव भी नाजायज़ होते । अगर यह कहा जाय कि कर्ण जन्म के बाद कुन्ती का विवाह किया गया था तो मानना पड़ेगा कि कर्ण-जन्म के पहिले कुन्ती का गान्धर्वत्रिवाह नहीं हुआ, अथवा कर्ण जन्म के बाद उसका पुनर्विवाह हुश्रा और एक बच्चा पैदा करने पर भी वह कन्या कहलाई । अगर कन्या नहीं कहलाई तो विवाह कैसे हुआ?