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(१३) समाधान-यदि इस विषय में शास्त्रार्थ की दृष्टि से लिखा जाय नच तो जैसे को तैसा ही उत्तर दिया जासकता है। जेनशास्त्रों में नो किसी अपेक्षा से गधे के सींग का भी अस्तित्व सिद्ध किया गया है । परन्तु हमें पाठकों की जिज्ञासा का भी खयाल है इसलिये तदनुकूल ही उत्तर दिया जाना है।
पॉच पापा में हिंसा मुख्य है । परन्तु द्रव्य क्षेत्र काल भाव की अपेक्षा स वह धानुकून अर्थात् कर्तव्य हो जानो है । जैसे-युद्ध में हिंसा हाती है, परन्तु सीता की धर्मरक्षा के लिये रामचन्द्र ने अगणित प्राणियों की हिंमा गई । अणु. वती युद्ध में जाते है, ऐसा शास्त्रों में स्पष्ट कयन है । शूकरन मुनिको रक्षा करने के लिये सिंह को मार डाला और खुद भी मरा, पुण्यवय किया और स्वर्ग गया । मन्दिर बनवाने में नधा अन्य बहुत से परापकार के साम्म कार्यों में हिंसा हानी है परन्तु वह पुण्यबन्ध का कारण कही गई है। जिन अमृतचन्द्र श्राचार्य की दुहाई आक्षेपक ने दी है, वे ही कहते हैं
अविधायापि हि हिंसा हिंसाफलभाजन भवत्येकः । कृत्वाप्यपरो हिंसां हिंसाफलभाजन न स्यात् ॥ कम्यापि दिशति हिना, हिंसाफलमेकमेव फलकाले। अन्यम्य सैव हिंसा दिशयहिंसाफल विफलम् ॥ हिंसाफलमपरस्य तु ददात्यहिमा तु परिणामे । इतरस्य पुनहिंसा दिशयहिंसाफल नान्यत् ॥
एक आदमी हिंसा न करके भी हिंसामागी हाना है, दूसरा हिंसा करके भी हिंसाभागी नहीं होता । किसी की हिंसा, हिंसाफल देनी है, किसी की हिंसा, अहिंसाफत देती है। किसी की अहिंसा, हिंसा फल देती है किसी कि अहिंसा अहिंसाफल देती है।
क्या इससे यह बात नहीं सिद्ध होनी कि कहीं हिंसा भी