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(१३६) (७) विधवाविवाह से जो सामाजिक और धार्मिक लाभ हमने सिद्ध किये हैं, क्या शगय से भी वे या वैसे लाम आप सिद्ध कर सकते हैं? . (0) विधवा जिस तरह हीन दृष्टि से देखी जाती है, क्या उसी तरह शगय न पीने वाले देखे जाते है ?
यदि मद्यपान में लाभ हो तो जिसमें उसके त्याग करने की शक्ति नहीं है उसको उसश विधान किया जासकता है, अन्यथा नहीं।
पूर्ण ब्रह्मचर्य की शक्ति प्रगट न होना विधवाविवाह का एक कारण है । जब तक अन्य कारण न मिले तब तक विधवाविवाह का विधान नहीं किया जाता है। उसके अन्य कारण मौजूद नहीं है इसीलिये उसका विधान किया गया है ।
आक्षेप (ख)-कार्यों की बहुतसी जातियाँ हैं-(१) मुनिधर्मविरुद्ध श्रावकानुरूप (२) गृहस्थविरुद्ध मुनिअनुरूप (३) उभयविरुद्ध (४) उभयअनुरूप । विवाह प्रथम भेद
समाधान-विधवाविवाह भी विवाह है इसलिये वह मुनिधर्म के विरुद्ध होने पर भी श्रावकानुरूप है । श्राप विधुरविवाह को विवाह मानते और विधवाविवाह को विवाह नहीं मानते-यह बिलकुल पक्षपात और मिथ्यात्व है । हम पहिले विधवाविवाह को विवाह सिद्ध कर चुके हैं।
बलाद्वैधव्य की शिक्षा जैनधर्म की शिक्षा नहीं हो सकती। आचार्यों ने विधवाविवाहका कहीं निषेध नहीं किया। हाँ, धूर्तता और मूर्खता पुराने जमाने में भी थी। सम्भव है आजकल के पण्डितों के समान कोई अज्ञानी और धूर्त हुश्रा हो और उसने जैनधर्म के विरुद्ध, जैनधर्म के नाम पर ही कुछ अंट संट लिख मारा हो। परन्तु ऐसी