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( १८ } आत्मघातक है। पक तरफ तो प्राक्षेपक कहना है कि पिनाको दी कन्या जामाता की सम्पत्ति है, दूसरी तरफ कहता है कि जामाना भी किसी को देना चाहे तो नहीं दे सकता । जय कि सम्पत्ति है तब क्यों नहीं दे सकता ? क्या इमसे यह नहीं सिद्ध होता कि स्त्री किसी की लम्पत्ति नहीं है ? स्त्रियों को सम्पत्ति मानने वाले कन्या विक्रय के साथ भार्या विक्रय, मातृ-विक्रय की कुप्रथाओं का भी मृत्रपान करने है। प्रेर, स्नियाँ किसी की सम्पत्ति हो चाहे न हो, दोनों ही श्रवन्याओं में विधवाओं को विवाह का अधिकार रहता है । इस नरह विवाह योग्य समं स्त्रियाँ उपलक्षणसे कुमारी सहश है। जैसे कन्या के सभी सरक्षक उपलक्षण से पितृसदश।
आक्षेप (श्री)-पन्या नाम स्त्री सामान्य का भी है, हम मी इसे स्वीकार करते हैं । विश्वलोचन कोष हो क्या, हेम और मेटिनी कोष भी ऐसा लिखते है, परन्तु जहाँ जमा सम्बन्ध होगा, शब्द का अर्थ भी वहाँ वैमा मानना होगा।
समाधान-जब पापक कन्या का अर्थ स्त्री-मामान्य स्वीकार करता है और विवाह के प्रकरण में में कन्या शब्द का अर्थ 'विवाह योग्य स्त्री' करता हूँ तो इसमें सम्बन्ध विरुद्धता या प्रकरणविरुद्धता कैले हो गई ? विवाह के प्रकरण में विवाह योग्य स्त्री को प्रकरण-विरुद्ध कहना बुद्धि का अद्भुत परिचय देना है। भोजन करते समय सैन्धव शब्दका अर्थ घोडा करना प्रकरण-विरुद्ध है, क्योंकि घोडा खाने की चीज़ नहीं है, परन्तु विवाहयोग्य स्त्री तो विवाह की चीज है । वह विवाह के प्रका रण में प्रकरण-विरुद्ध कैसे हो सकती है ? आक्षेपक कहेगा कि विवाह तो कुमारी का ही होता है, इसलिये कन्या का कुमारी अर्थ ही प्रकरण-सगत है । परन्तु यह तो श्राक्षेपफ की मनगर्दत बात है, जैनधर्म के अनुसार तो कुमारी और विधवा