________________
(६६) अलीटस, उत्तरी एशिया, टहीटी, मैकरोनेशिया, कैण्डोन आदि देश और द्वीपों के निवासियों में भी पाये जाते हैं। इसलिये जो लोग लोकलजा और लोकाचार की दुहाई देकर कर्तव्याकर्तव्य का निर्णय करना चाहते हैं वे मुर्ख है। हमारे कृपमराहक पण्डित बार बार चिल्लाया करते हैं-"क्योजी, ऐसा भी कहीं होता है ?" उन्हें जानना चाहिये कि यह "कहीं" और 'लोक' तुम्हारे घर में ही सीमित नहीं हैं। 'कहीं का क्षेत्र व 'लोक' बहुन बडे और विचित्र है, और उन्हें जानने के लिये विस्तृत अध्ययन की जरूरत है। लोकाचार, क्षेत्र काल की अपना विविध और परिवर्तनशील है, इसलिये उस को कसोटी बनाना मुर्खता है। हम तो कहते है कि अगर विधवाविवाह धर्मविरुद्ध है नो वह लोकलजा का विषय हो या न हा, वह त्यागने योग्य है और अगर वह धर्मविरुद्ध नहीं है नो लोगों के चकवाद की चिन्ता न करके उसे अपनाना चाहिये। धर्मानुकल समाजरना और न्याय के लिये अगर लोकलजा का सामना करना पडे तो उसको जीतना परिपह विजय के समान श्रेयस्कर है।
इसके बाद पुनर्विवाहिताओं के विषय में आक्षेपक ने जो शब्द लिखे हैं वे धृपता के सूत्रक हैं। अगर पुनर्विवाहिता के तीसरा चौथा और जार पुरुष होना भी सम्भव है तो पुनविवाहित पुरुष के तीसरी चौथी पॉची तथा अनेक रखैल माशूका होना सम्भव है। इस नगह पुनर्विवाह करने वालाआक्षेपकके कथनानुसार मॅडया है । श्राक्षेपक की सम्भावना का कुछ ठिकाना भी है । एक साथ हज़ारों स्त्रियॉ रखने वाला पुरुष तो सन्तोषी माना जाय और पुनर्विवाह करके एक ही पुरुष के साथ रहने वाली स्त्री असन्तुष्ट मानी जाय, यह आक्षेपक की अन्धेर नगरी का न्याय है । पाठक देखें कि