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( 20 ) माता पिता या,समाज का धर्म क्यों नहीं? और वह कन्या भी क्यों नहीं?
प्राक्षेपक के होशहवाल तो यहाँ तक विगड हुप है कि एक बच्चा पैदा कर देने के बाद भी कुन्ती को कुमारी कन्या बतला रहे हैं। जब एक बच्चे की मां कुमारी कन्या हो सकती है तव वेचारी विधवा, कुमारी कन्या नहीं, सिर्फ 'कन्या' क्यों नहीं हो सकती १ पन्या के साथ कुमारी विशेषण लगा कर आक्षेपक ने यह स्वीकार कर लिया है कि कन्या कुमारी भी होती है और अकुमारी (विधवा) भी होती है।
आक्षेप (झ)-कुमारी जैसे स्वस्त्री बनायी जा सकती है उस प्रकार विधवा नहीं बनायी जा सकती। क्योंकि कुमारी परस्त्री नहीं है। आप कुमारी को परस्त्री कहने का साहस क्यों कर गये ? वह तो स्त्री भी नहीं है । भावी न्त्री है।
समाधान-कुमारी, स्त्री तो अवश्य है, क्योंकि वह पुरुष अथवा नपुसक नहीं है । परन्तु श्रान पक ने स्त्री शब्द का भार्या अर्थ किया है । इसलिये उसी पर विचार किया जाता है । आचार शास्त्रों में ब्रह्मचर्याणुवती को कुमारी के साथ सम्भोग करने की मनाई है, इसलिये कुमारी परस्त्री है। अपनी स्त्री के सिवाय अन्य स्त्रियों को परस्त्री कहते हैं। इस लिये भी कुमारी परस्त्री है । कुन्ती को अपनी सतान छिपाना पडी; इसलिये भी सिद्ध होता है कि कुमारी परम्त्री है। राज. नियमों के अनुसार भी कुमारी परस्त्री है । कल्पना कर लो, अगर पाण्डु अणुवती होते तो विवाह के बिना कुन्ती के साथ सम्भोग करने से उनका अणुव्रत क्या नष्ट न होता? जैनशास्त्रो के अनुसार उनका अणुव्रत अवश्य नष्ट होता । लेकिन विवाह करके अगर सम्भोग करते तो उनका अणुवत नष्ट नहीं होता। क्या इससे यह नहीं मालूम होता कि विवाह के द्वारा परस्त्री,