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( ३ ) क्योंकि ये लोग कहते है कि व्यभिचार भले ही करलो, परन्तु विधवाविवाह मत कगे ! विधवाविवाह करने के पहिले पंडिन उदयलाल जो मे एक बुजुर्ग पण्डित जी ने कहा था कि-"तुम उसे स्त्री के रूप में यों ही रखलो, उमफे माथ विवाह क्यों करते हो?" श्राप के महयोगी विद्यानन्द जी ने पाँच प्रश्न के उत्तर में लिखा है कि'यपि कुशीला नणहत्या करनी है किन्तु फिर भी जिनमार्ग मे भय जाती है । उममें स्वाभिमान लजा है। इसलिये वह विधवाविवाहित या घेण्या में अच्छी है"-क्या अब भी स्थिनिपालक लोग व्यभिचारपांगकता का कलक छिपा सकते है? उम सरकार को क्या कहा जाय जो चोरों को प्रशंसा करती है और व्यापारियों को निन्दा ?
आक्षेप (ग) यदि किसी को स्त्री नहीं मिलती तो क्या व्या धर्म के नाम पर मर दे दें? विधवाविवाह के प्रचार हो जाने पर भी सभी पुल्यों को स्त्रियाँ न मिल जायँगो तो क्या स्त्री वाले लोग एक एक वगटे को स्त्रियाँ दे देंगे।
ममाधान-सुधारकों के धर्मानुसार स्त्रियों का देना लेना नहीं बन सकता, क्योंकि स्त्रिया सम्पत्ति नहीं है । हॉ, म्पिनिपातक पगिदनों के मनानुसार घटे दो घटे या महीनों वर्षों लिये स्त्री दी जानकनी है, प्योंकि उनके मतानुसार यह टेन लेने की वस्तु है, मोज्य है, सम्पत्ति हे । पुरुष की इच्छा के अनुसार नाचने के सिवाय उसका कोई व्यक्तित्व नहीं है। र, लोगों का यह कर्तव्य नहीं है कि वे स्त्रियाँ दे दें, परन्तु उनका इतना कर्तव्य अवश्य है कि कोई पुरुप स्त्री प्राप्न करता हो या कोर्ड म्यो पनि प्राप्त करती हो तो उनके मार्ग में गड़े न अटकावें । यह कहना कि "विनया अपने भाग्योदय से पनिदान हुई, कोई श्या करें" मूर्खता पार पक्षपात है। माग्यो