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( १२० ) है कि यह अभी तक यह नहीं समझ पाया है कि कामवासना की भांशिक निवृत्तिका मतलब खदारसन्तोप या स्वपनिसन्ताप है। जो लोग स्वदाग्सन्तोष को विवाह का मुख्य फल नहीं मानते वे जैनधर्म से बिलकुल अनमिश निरे वुद्ध है । वेचारा । श्रीलाल, काम निवृत्ति अर्थात् परदार निवृत्ति या परपुरुषनिवृतिको धर्म, और स्वदारप्रवृत्तिको काम कहनेमें चकित होता है। बाहरे श्रीलाल के पाण्डित्य ! गृहस्थाश्रम, धर्म अर्थ काम तीनों का साधक है, परन्तु उन तीनों में भी परस्पर साध्य साधकता हो सकती है। जैसे- धर्म, अर्थ काम का साधक है, अर्थ, कामका साधक है श्रादि । खैर, हमाग कहना इतना ही है कि कुमारी विवाह के जो जो फल है वे सब विधवा विवाहसे भी मिलते हैं, इसलिये विधवाविवाह भी विधेय है ।
आक्षेप (ङ)-जो पुरुष विषयों को न छोड सके वह गृहस्थधर्म धारण करे । यहाँ विषय शब्द से केवल काम की ही सूझी! (श्रीलाल)
समाधान-विषय तो पाँचौ इन्द्रियों के होते है, परन्तु उन सब में यह प्रधान है। क्योंकि इसका जीतना सबसे अधिक कठिन है। जिसने काम को जीत लिया उसे अन्य विषयों को जीतने में कठिनाई नहीं पड़ती। इसलिये काम की मर्यादा करने वाला एक स्वतन्त्र अणुव्रत कहा गया है। अन्य मागोपभोग सामग्रियों के व्रत को तो गुणव्रत या शिक्षावत में डाल दिया है । उसका सातिचार पालन करते हुए भी वती रह सकता है, परन्तु ब्रह्मचर्याणुव्रत में अतिचार लगने से खून प्रतिमा नष्ट हो जाती है । क्या इससे सब विषयों में काम विषय की प्रधानता नहीं मालूम होती ? ग्रन्धकारों ने इस शाध्यमाचरेत्" इस नीति के अनुसार ऐसा ही प्रयोग करना पड़ा है।
-सव्यसाची।