________________
( १२८ )
चार होता है । अनि कारण है, परन्तु उसके होने पर भी अगर sa निकले तो नि और धुनों का कार्य कारणभाव व्यभिafत नहीं कहलाता | हमने इसी बात के समर्थन में कहा था कि "चिकित्सा करने पर भी लोग मरते है, शास्त्री होने पर भी लोग धर्म नहीं समझते" । इस पर आप कहते है कि "वह चिकित्सा नहीं, चिकित्साभास है, वह शास्त्री, शास्त्री नहीं है" । बहुत ठीक, हम भी कहते है कि जिस विवाह के बाद काम लालसा शान्त नहीं हुई, किन्तु बढी है, वह विवाह नहीं, चित्राहाभास है | वास्तविक विवाह तो कामलालसा को अवश्य शांत करेगा। इसलिये विधवाविवाह से भी कामलालसा की शांति होती है ।
आक्षेप (ड) - यह कोई नियम नहीं कि विवाह के बिना प्रत्येक व्यक्ति को देखकर पापवासना जागृत हो जाय । वासुपूज्य कलङ्क आदि के विवाह नहीं हुए। क्या सभी श्रसयमी थे ?
-
समाधान - कामलालसा की अांशिक शांति के लिए विवाह एक औषधि है । वासुपूज्य यादि ब्रह्मचारी थे। उनमें कामलालसा थी ही नहीं, इसलिये उन्हें विवाह की भी जरू रत नहीं थी । "अमुक श्रादमी सख़्त बीमार है। अगर उसकी चिकित्सा न होगी तो मरजायगा " - इस के उत्तर में अगर यह कहा जाय कि - वैद्य के पास तो सौ दोसौ आदमी जाते हैं, बाक़ी क्यों नहीं मरजाते ? तो क्या यह उत्तर ठीक होगा ? अरे भाई ! बीमार को श्रौषधि चाहिये, नीरोगको औषधि नहीं चाहिये | इसी तरह कामलालसा वाले मनुष्य को उस की श्रांशिक शांति के लिए विवाह की आवश्यकता है, न कि ब्रह्म• चारी को । इससे एक बात यह भी सिद्ध होती है कि विवाह का मुख्य उद्देश्य लडके बच्चे नहीं हैं । बालब्रह्मचारियों के