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आक्षेपक अपनी बहिन बेटियों के विवाह को कामभिक्षा समझता है ? यदि नहीं, तो विधवाश्री के विवाह को कामभिक्षा नहीं कह सकते । विधवानी का विवाह धर्मवृद्धि का कारण है, यह बात हम पहिले सिद्ध कर चुके हैं।
आक्षेप (ठ)-विवाह से कामलालसा घटती है, इस का एक भी प्रमाण नहीं दिया । विवाह होने पर भी कामलालसा नट नहीं हुई, उल्टो बढ़ी है, जैसे रावणादिक की।
(विद्यानन्द) समाधान-पावालगोपाल प्रसिद्ध वातको शास्त्र प्रमाणों की ज़रूरत नहीं होनी । फिर भी प्रमाण चाहिये तो आशाधर जी के इन शब्दों पर ध्यान दीजिये कि अगर पुत्र पुत्री का विवाह न किया जायगा ता वे स्वच्छन्दचारी हा जायेंगे (देखो प्राक्षप 'ङ) । विवाह से अगर कुलसमयलाकविरोधी यह म्वच्छन्दाचार घटता है तो यह क्या कामलालसा का घटना न कहलाया? विवाह होने पर मी अगर किसी की कामलालसा नष्ट नहीं होती तो इसके लिये हम कह चुके हैं कि उपाय १०० में दस जगह असफल भी होता है। तीर्थदरों के उपदेश रहने पर भी अगर अभव्य का उद्धार न हो, सूर्य के रहने पर भी अगर उल्लू को न दिखे तो इसमें तीर्थङ्कर की या सूर्य की उपयोगिता नट नहीं होती है। इसी तरह विवाह के होने पर अगर किसी का दुराचार न रुके तो इससे उसकी उपयोगिता का प्रभाव नहीं कहा जा सकता । आक्षपक ने यहाँ व्यभिचार दोष दिखलाकर न्यायनभिज्ञता का परिचय दिया है। इस दृष्टि से तो तीर्थदर और सूर्य की उपयोगिता भी व्यमिचरिन कहलाई । श्राक्षेपक को जानना चाहिये कि कारण के सद्भाव में कार्य के प्रभाव होने पर व्यभिचार नहीं होता, किन्तु कार्य के सद्भावमें कारण के प्रभाव होने पर व्यभि