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(१२२) सही, परन्तु विवाह वाले के न हुए नो टमका नो घर हो चौपट है।
समाधान-त्याग के गौन गाने वालों की यहाँ पाल ग्वुल गई। उनके ढांगा का भगडाफोड होगया। अरे माई! घर, गृहिणी को कहते हे गृहं हि गृहिणीमा:-मागारधर्मामृन । लडका न होने से न गृहिणी मरेगी, न गृही मरेगा, न दानों के ब्रह्मचर्याणुवन में बाधा श्रायगी, न महावन धारण करने का अधिकार छिन जायगा । मनुष्य जीवन के जो वास्तविक उद्देश्य हैं उनका पफ भी माधन नष्ट न होगा। क्या इमी का नाम चौपट हो जाना है ? यनावटी धर्म के वेष में ग्गे दए ढोंगियों ! क्या यही तुम्हाग जीवन मर्यस्व है? हाँ, मन्नान के न होने से समाज की हानि है. क्योंकि समाज मोक्ष नहीं जाती न मुनि बनती है । अगर वह मुनि बन जाय तो नष्ट हो जाय । एक एक दो दो मिलकर ही तो समाज है । सन्तान के अभाव में समाज नट हो सकती है, परन्तु सन्तान के प्रभाव में व्यक्ति तो मोक्ष तक जामकता है। श्रय समझो कि मन्लान किसके लिये मुख्य फल कहलाया ? क्या इनने म्पट प्रमाण के रहते हुए भी तुम्हारा मुख्य गौण का प्रश्न बना हुआ है ?
आक्षेप (छ)-कुमारी और विधवा को स्त्री समान समझकर ममान कर्त्तव्य बननाना भूल है । माता यहिन वधू सभी स्त्री है, परन्तु वहिन माता अभाज्य है, वधू भोज्य है।
(श्रीलाल) समाधान-भोज्य-भोजक सम्बन्ध की नीच और बर्वर कल्पनाका हम समाधानकर चुके हैं। जो हमारी बहिन है वह हमारे बहिनेउ की वहिन नहीं है । जो हमारी माता है वह हमारे पिता को माना नहीं है । हमारी वधृ दूसरे की वधू नहीं है । इसलिये यह भोज्याभोज्यता आपेक्षिक है । सर्वथा