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(8 ) कहेंगे कि जब तुमने रुपये का निषेध कर दिया तो चौदह श्रआन की विधि क्यों करते हो ? श्योंकि चौदह पाने ना रुपये के भीतर हो है। यह विराध नहीं. विरोध प्रदर्शन को बोमागे है। 'एक के हाने पर दो नहीं हैं' (सत्त्वेऽपि द्वयं नास्ति) के समान 'दोन हाने पर एक है' को यान भी परम्पर विरुद्ध नहीं है । खेद है कि आक्षेपक को इनना सा भी भाषाज्ञान नहीं है।
आक्षेप (ज)-मछली की अपेक्षा बकरा ग्राह्य है या बकरा की अपेक्षा मछली ? निद्धान्तदृष्टि से दानों ही नहीं।
(विद्यानन्द) समाधान-विधवाविवाह और भ्रूणहत्या इन दानों में समानता नहीं है किन्तु नर-तमता है। और ऐसी नरतमना है जैसी कि विधुरविवाह और नरहत्या में है। इसलिये मछली और बकरे का दृष्टान्त विषम है । जहाँ तरतमना नहीं वहाँ चुनाव नहीं हो सकता । त्रसहिमा और स्थावर हिला, अंगु. व्रत और महावन के समान व्यभिचार और विधवाविवाह में चुनाव हो सकता है जैसा कि विधुगविवाह और व्यभिचार में होता है।
आक्षेप (झ) चाणक्य ने कहा है कि गजा और पण्डित एक ही बार बोलते हैं कन्या एक ही बार दी जानी है। (विद्यानन्द)
समाधान-हमने विधवाविवाह को न्यायोचित कहा है। उसका विरोध करने के लिये ऊपर का नीतिवाक्य उद्धत किया गया है। आक्षेपक ने भूल से न्याय और नीति का एक ही अर्थ समझ लिया है । असल में नीति शब्द के, न्याय से अतिरिक्त तीन अर्थ हैं । (१) कानून, (२) चाल, ढग, पॉलिसी. (३)रीनि विराज । ये तीनों ही बाते न्याय के विरुद्ध भी हो सकती है। दक्षिण के एक राज्य में ऐसा कानन