________________
( १९४) केवनी के नाम में ही क्या न लिखा गया हो, उन कचरे में डाल देना चाहिये । धृतों की धृतना का छिपाना घोर मिथ्यात्व का प्रचार करना है । जैन सिहान्तों के विरुद्ध जाने पर भी ऐसे शास्त्रों का मानना घार मिथ्यात्वी यनज्ञाना हैं। गरु परम्पग है कहाँ ? श्वेताम्बर यह है कि हमारे मूत्र भगवान महावीर क कहे हुए है । दिगम्बर कहते हैं कि कुन्द कुन्द से लेकर भट्टारको और अन्य अनेक पांगापन्धियों नक के बनाये हुए अन्य बीरभगवान की वाणी है। अब कहिये ! किसकी गुरु परम्पग ठीक है ? यो ना सभी अपने बाप के गीत गाते हैं परन्तु इनने सही सन्यासत्य का निर्णय नहीं हो जाता । यहाँ तो गुरुपरम्पग के नाम पर मक्खी हॉकने बैठा न रहना पड़ेगा । समस्त माहित्य को माक्षी लेकर अपनी बुद्धि से जैनधर्म के मूल सिद्धान्न स्वाजने पडेंगे और उन्हों सिद्धान्तों का कलौटी बनाकर स्वर्ण और पीनल की परीना करना पडेगी, और धृतो नथा पक्षपानियों का भगडाफोड करना पडेगा। यह कहना कि "प्राचीन लेखकों में पक्षपाती धूर्त नहीं हुए" बिलकुल धोखेबाजी या अमानता है। माना कि बहुत से लेखकों ने प्रापेक्षिक कथन किया है जैसाकि इमी प्रकरण में ऊपर कहा जा चुका है परन्तु धोडे बहुत निरे पक्ष. पाती, उत्सूत्रवादी और कुलजानि मद के प्रचारक घोर मिथ्यात्वी भी हुए हैं। अगर किसी लेखक ने यह लिया हो कि "पुरुष तो एक साथ हजागें स्त्रियाँ रखने पर भी अणुव्रती है परन्तु स्त्री, पक पनि के मर जाने पर भी दूसरा पनि रखे नो घोर व्यभिचारिणी है उसको पुनर्विवाह का अधिकार ही-नहीं है" तो क्या पक्षपान न कहलायगा ? पक्षपात के क्या सींग होते हैं ? यह पुरुषत्व की उन्मत्तता का तांडव नहीं तो क्या है ? पुरुषों ने शूद्र पुरुषों को भी कुचला है, इससे तो