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(80) लिये स्त्री लाता है ? या पण्डितों के वेद त्रिवर्णाचार के अनु. सार योनि पूजा के लिये लाता है ? क्या यह इन्द्रिय-विषय नहीं है ? क्या विधवाविवाह में ही अनन्त इन्द्रिय-विषय एकत्रित हो गये हैं ? क्या तुम्हारा जैनधर्म यही कहता है कि पुरुष तो मनमाने भोग भोगे, मनमाने विवाह करें, उससे वीतरागता को धक्का नहीं लगता, परन्तु विधवाविवाह से लग जाता है ? इमी को क्या "छोडो छोडो की धुन" कहते है ?
आक्षेप (छ)-कुशीला अपने पापों को मार्ग-प्रेम के कारण छिपाती है। · 'वह भ्रूणहत्या करती है फिर भी विवाहित विधवा या वेश्या से अच्छी है । (विद्यानन्द)
समाधान-अगर मार्ग-प्रेम होता तो गुप्त पाप क्यों करती? भ्रणहत्याएँ क्यों करती? क्या इनसे जिनमार्ग पित नहीं होता ? या ये भी जैनमार्ग के अङ्ग है ? चोर छिपाकर धन हरण करता है, यह भी मार्गप्रेम कहलाया। अनेक धर्म: धुरन्धर लौडेवाज़ी करते हैं, परस्त्री सेवन करते हैं, यह भी मार्गप्रेम का ही फल समझना चाहिये ! मतलब यह कि जो मनुष्य समाज को जितना अधिक धोखा देकर पाप कर लेता है वह उतना ही अधिक मार्गप्रेमी कहलाया ! वाहरे मार्ग! और बाहरे मार्गप्रेमी!
व्यभिचारिणी स्त्री वेश्या क्यों नहीं बनजाती ? इसका उत्तर यह है कि वेश्याजीवन सिर्फ व्यभिचार से ही नहीं श्राजाता । उसके लिये अनेक कलाएँ चाहिये, जिनका कि दुरुपयोग किया जा सके अथवा जिन कलाओं के जाल में अनेक शिकार फंसाए जासके । कुछ दुःसाहस भी चाहिये, कुछ निमित्त भी चाहिये, कुछ स्वावलम्बन और निर्भयता भी चाहिये। जिनमें ये बातें होती हैं वे वेश्याएँ बन ही जाती हैं । आज जो भारतवर्ष में लाखो वेश्यायें पाई जाती हैं