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तरह की बीमारियों आदि वैराग्य की ओर झुकाने वाली हैं । पुराणों में ऐसे कितने मनुष्यों का उल्लेख है जिन्हें बालविध वाओं को देखकर वैराग्य पैदा हुआ हो ? कर्मवैचित्रय की सूचना पुराय और पाप दोनों से मिलती हैं। विधवा के देखने से जहाँ पाप कर्म की विचित्रता मालूम होती है वहाँ विधवाविवाह से पुण्य कर्म की विचित्रता मालूम होती है । जिस प्रकार एक स्त्री मर जाने पर पुण्योदय से दूसरी स्त्री मिल जाती है, उसी प्रकार एक पुरुष के मर जाने पर भी पुरायोदय से दूसरा पुरुष मिल जाता है। वैराग्य के लिये बालविधवाश्री की स्थिति चाहना ऐसी निर्दयता, क्र रता और रुद्रता है कि जिसकी उपमा नहीं मिलती।
पाँचवाँ प्रश्न
इस प्रश्न का सम्बन्ध विधवाविवाह से बहुत कम है । इस विषय में हमने लिखा था कि वेश्या और कुशीला विधवा के मायाचार में अन्तर है । कुशीता विधवा का मायाचार बहुत है । हॉ, व्यक्तिगत दृष्टि से किसी के अन्तरङ्ग भावों का निर्णय होना कठिन है । इस विषय में श्राक्षेपकों को कोई ज्याद ऐतराज़ नहीं है, परन्तु 'विरोध तो करना ही चाहिये' यह सोच कर उनने विरोध किया है ।
आक्षेप ( क ) - वेश्या, माया-मूर्ति है । व्यभिचार ही उसका कार्य है । वह अहर्निश माया मूर्ति है । किन्तु यह नियम नहीं है कि कुशीला जन्मभर कुशीला रहे । ( विद्यानन्द ) समाधान - यहाँ यह प्रश्न नहीं है कि पाप किसका ज्याद है ? प्रश्न मायाचार का है। जो कार्य जितना किया जाता है उसमें उतना ही ज्याद: मायाचार है । वेश्या छुपाकर इस कार्य को छुपाकर नहीं करती, जबकि कुशीला को छुपाकर