________________
( ७० ) आक्षेपक से जब विधवाविवाह के विरोध में कुछ कहते नहीं बन पडा तब उसने यह बेहूदा बक्रवाद शुरू कर दिया है।
आक्षेप (ख)-विवाह तो कन्या का होता है सो भी कन्यादान पूर्वक । वह विधवा न कन्या है न उसका कोई देने वाला । जिसकी थी वह चल बसा."वह किसी के लिये वसीयत कर गया नहीं, अब देने का अधिकारी कौन ? (श्रीलाल)
समाधान-इन श्राक्षपों का समाधान प्रथम प्रश्न के उत्तर में कर चुके हैं । देखो, 'ए' 'पे'ओ' 'घ'। हमारे विवे. चन से सिद्ध है कि स्त्री सम्पत्ति नहीं है। जय सम्पत्ति नहीं है तो उसकी वसीयत करने का अधिकार किसे है । कन्या. दान भी अनुचित है । यह जबर्दस्ती का दान है; अत कुदान है। इसलिये प्राचार्य सोमदेव ने कुदानों की निन्दा करते हुए लिखा है :
हिरण्यपशु भूमीनाम्कन्याशय्यानवाससाम् । दानवहुविधैश्चान्यैर्न पाप मुपशाम्यति ॥
चॉदी, पशु, जमीन, कन्या, शय्या, अन्न, वस्त्र आदि दानों से पाप शान्त नहीं होता। अगर विवाह का लक्षण कन्यादान होता तो वह कुदान में शामिल कभी न किया जाता । यह बात पण्डिनों के महामान्य त्रिवर्णाचार में भी पायी जाती है :
कन्यादस्ति सुवर्ण वाजि कपिला दासी तिलास्यन्दन । 'क्ष्मा गेहे प्रतिवद्धमत्र दशधा दानं दरिद्रप्सितम् ॥ तीर्थान्ते जिनशीतलस्य सुतरामाविश्वकार स्वयं । लुब्धो वस्तुषु भूतिशर्म तनयो-सौमुण्डशालायनः ॥
कन्या, हाथी, सुवर्ण, घोड़ा, गाय, दासी, तिल, रथ, ज़मीन, ये दरिद्रों को इष्ट दश प्रकार के दान हैं, जिन का,