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पिता ज्यादि को गुरु कह सकते हैं, परन्तु सब तरह के गुरुओं को पिता नहीं कह सकते । कन्या का विशेषण 'पितृदत्ता' हैं न कि 'गुरुदत्ता' जिससे कि अमरकोष के अनुसार श्राप विस्तृत अर्थ कर सकें। इसलिये यहाँ पितृशब्द उपलक्षण है । इसी प्रकार कन्या शब्द भी उपलक्षण है । नाममाला में 'स्त्री पतिवरः' न कहने का कारण यह है कि प्रत्येक स्त्री का पति घर नहीं कहलाता, किन्तु जो कन्या अर्थात् जो विवाह योग्य स्त्री ( दुल्हिन ) होती हैं उसी के पति को वर ( दुल्हा ) कहते है । 'स्त्री पतिर्वः' कह देने से सभी मस्त्रीक पुरुष जीवन भर के लिये वर अर्थात् दूल्हा कहलाने लगते ।
आक्षेप (त) - श्रमरकोप में 'पुनभू' शब्द का अर्थ किया है 'दुबारा विवाह करने वाली स्त्री' और कवि सम्राट् धनञ्जय ने पुनर्भू शब्द को व्यभिचारिणी स्त्रियों के नामों में डाला है। धनञ्जय, अकलङ्क और पूज्यपाद की काटि के है, क्योंकि नाममाला में लिखा है " प्रमाणमकलङ्कस्य पूज्यपादस्य लक्षणं । द्विसन्धान कवेः काव्यम् रत्नत्रयम पश्चिमम् ” नाममाला के प्रमाण से सिद्ध है कि स्त्री का पुनर्विवाह व्यभिचार है ।
समाधान - धनञ्जयजी कवि थे, परन्तु उनका कोष संस्कृत साहित्य के सब कोषों से छोटा और नीचे के दर्जे का है । ऊपर जो इन की प्रशंसा में श्लोक उद्धृत किया गया है वह खुद ही इन्हीं का बनाया है। इस तरह अपने मुँह से प्रशंसा करने से ही कोई बड़ा नहीं हो जाता। धनञ्जय को पूज्यपाद या अकलङ्क की कोटि का कहना उन दोनों श्राचार्यों का अपमान करना है । धनञ्जय यदि सर्वश्रेष्ठ कवि भी होते तो भी क्या कलङ्कादि के समान मान्य हो सकते थे ? गाँधी जी सब से बड़े नेता है, गामा सब से बडा पहलवान है और गौहर सर्व श्रेष्ठ गायिका है तो क्या गाँधीजी गामा और गौहर की इज्जत