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भी दोषी कहलाया । वास्तविक बात तो यह है कि न पिधुर विवाह में ज्यादः ममत्य परिणाम है और न विधवाविवाह में। हॉ, अगर कोई स्त्री पक ही समय में दो पति रक्खे अथवा कोई पुरुष एक ही समय में दो स्त्रियाँ रम्ये ती ममन्य परिणाम (राग परिणति ) ज्यादः बहलायगा । अगर किसी ने यह प्रतिज्ञा ली कि मैं २००) रुपये ज्यादा न रम्वेगा और अब यदि वह २०१) रवये नो उस की गगपरिणति में वृद्धि मानी जायगी । लेकिन अगर वह २००) में से एक रुपया सर्च करदे फिर दुसरा एक रुपया पेटा करके २००) करले तो यह नहीं कहा जायगा कि तू दुसरा नया रुपया लाया है, इमलिये तेरी प्रतिज्ञा भह हो गई और ममत्व परिणाम बढ गया। किसी ने एक घोडा रखने की प्रतिमा ली, दुर्भाग्य से वह मर गया: इसलिये उसने दूसग घोडासरीदा । यहाँ पर भी वह प्रतिमा च्युत या अधिक रागी (परिग्रही ) नहीं कहा जा सकता। इसी प्रकार एक पति के मर जाने पर दूसग विवाह करना, या एक पत्नी के मरजाने पर दूसग विवाह करना अधिक राग (परिग्रह ) नहीं कहा जा सकता । हाँ, पति के या पत्नी के जीवित रहते दूसग विवाह करना, अवश्य ही अधिक रागी होना है । परन्तु पण्डितों के अंधेर नगरी के न्याया नुसार पुरुप तो एक साथ हजारों स्त्रियों के रखने पर भी अधिक परिग्रही नहीं है और स्त्री, एक पति के मर जाने पर दूसरा विवाह करने से, ही, असंख्यात गुणी परिग्रहशालिनी हैं ! कैसा अद्भुत न्याय है ?
विधवाविवाह में प्रारम्भ कम है, परन्तु इसका कारण गुण्डों का तमाशा नहीं है । तमाशे के लिये तो ज्यादः प्रारम्भ की जरूरत है । विधवाविवाह तमाशा नहीं है इसलिये आरम्भ कम है। असली बात तो यह है कि विधवाविवाह में शामिल