________________
( ६३ )
होने वाले पुरुष धर्म, दयालु, विवेकी और द्रव्य क्षेत्र काल भाव के माना होते है, इसलिये उसमें किसी भी तरह के ढोंग और कुरूढियों को स्थान नहीं मिलता। इसीलिये उसमें आरम्भ कम होता है। इस तरह विधवाविवाहमें विवादरूपता है, अल्प आरम्भ है, अधिक परिग्रह नहीं है, वेश्यासेवन जैसा नहीं है । वेश्या सेवन या परस्त्री-सेवन से विधवाविवाह में क्या फरक है, यह बान हम पहिले पतला चुके है ।
श्राक्षेप (घ) --जय विधवाविवाह होने लगेंगे, तब बडे बडे मोटे मोटे पुरुषत्वहीन पुरुषों की हत्याएँ होंगी ओर तलाक़ का बाजार गर्म होगा । (श्रीलाल )
समाधान - श्रक्षेपक के कथन से मालूम होता हैं कि समाज में बहुत से बड़े बड़े मोटे मोटे पुरुष ऐसे हैं जो नपुन्सक होकर भी स्त्री रखने का शौक रखते हैं। अगर यह बात सच है तो एक ऐसे क़ानून की बडी आवश्यक्ता है जिससे पैसे धृष्ट, बेईमान, निर्लज और धोखेबाज नपुंसकों की आजन्म काले पानी की सजा दी जा सकें, जो नपुन्सक होते हुए भी एक स्त्री के जीवन को बर्बाद कर देते हैं, उसे जीते जी जीवन भर जलाते हैं-उनका अपराध तो मृत्युदण्ड के लायक हैं । चिप देना पाप है, परन्तु ऐसे पापियोंको विष देना ऐसा पाप है जो सम्मव्य कहा जासकता है। नि सन्देह ऐसे पापी, श्रीमानों में ही होते हैं। क्योंकि पहिले तो गरीबों में ऐसे नपुन्सक होते हो नहीं है । अगर कोई हुआ मी, तो जब पुरुषत्व होने पर भी गरीबों के विवाह में कठिनाई है तो पुरुषत्वहीन होने पर तो विवाह ही कैसे होगा ? श्रीमान् लोग तो पैसे के बल पर विवाह करा लेते है | अगर वे विवाह न करावे ना लोग योही कहने लगे कि क्या मैासाहिव नपुन्सक है ? इसलिये वे feere गते हे और अपने घर में दर्जी, सुनार, लोदी
1