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( ५३ ) विवेचन भावों के अनुसार है और चरणानुयोग का विवेचन वायक्रिया के अनुमार । बरणानुयोग का मुनि व पायक करणानुयोग का मिथ्याधि हो सकता है । भावों के मुधार के लिये किया है प्रधान करणानुयोग के धर्म के लिये नरणानुयोग का धर्म । विवाह में पुरुयको कामलालसा भन्य त्रियों से घट कर एक हीमो में केन्द्रीभूत होजाती है । इस प्रकार का फन्द्रीभृन होना कुमागे-विवाह से भी हैं और विधवा-विवाह से भी है, इमलिये करणानुयोग की गंपेक्षा कुमारी-विवाह योर विधवाविवाद में कुछ फर्क नहीं हैं। इमलिये कुमारी विवाह और विधवाविवाह के लिये जुदी जुदी पात्राएं नहीं मनाई जामनी न बनाई गई है । अगर पानेपक करणानुयांग कम्बाप को समझने की चेष्टा करेगा तो उसे सच्ची का यह बात समझ में भाजायगी।
सानप (घ)-विधया के लिये भाचार-शास्त्र में स्पष्ट बंधय दीजा का विधान है।
समाधान-साक्षेप का उत्तर नम्बर 'ब' में दिया गया है।
एमबाट पानेगा ने मम्यत्य अन्ध का कारण है या नदीम विषय पर अनावश्यक विवंचन किया है, जिसका विधवाविवाहम कोई नामक नहीं है। हाँ, यह बात हम पहिले निम्नार में कार चुके कि सम्यनवी विधवा विवाह कर सकना।
दूसरा प्रश्न दुमा प्रश्न के उत्तर में कोई ऐसी धान नहीं है जिसका उत्तर पहिले प्रश्न के उत्तर मेंन आगया हो । इसलिये यहाँ पर विशेष न लिखा जायगा । पुनर्विवाह करने वाला सम्यकवी